Sunday, 10 June 2012

नवमांश और कालांश में विभेद (कृष्णमूर्ति पद्धति के माध्यम से)


प्राचीन काल में ऋषि त्रि-कालदर्शी होते थे। त्रि -कालदर्शी अर्थात भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों पर उनकी दृष्टि रहती थी। आज वक्त बदल गया है और हमारी जीवनशैली में भी काफी बदलाव आ गया है। अब न तो हमारे पास धैर्य है और न तो इतनी साधना करने का साहस है।
आज भूत, भविष्य तो क्या वर्तमान को समझना भी हम लोगों के लिए कठिन हो गया है। इस स्थिति में परम पिता ब्रह्मा द्वारा प्रदान किया गया वेद और उसमें वर्णित ज्योतिष हमारे लिए बहुत ही लाभप्रद और उपयोगी है। वैदिक ज्योतिष की इस महान विधा से व्यक्ति के जीवन की सभी घटनाओ की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
वैदिक ज्योतिष अपने आप में रहस्य का भंडार है । वैदिक ज्योतिष की गूढ़ता को कम करने और नई पीढियों के लिए इसे और भी आसान बनाने व सटीक फलादेश के लिए हर युग में महान ज्योतिषशास्त्रियों ने शोध किये जिससे कई नये तथ्य उभरकर सामने आये। 20वीं सदी के महान दक्षिण भारतीय ज्योतिषशास्त्री कृष्णमूर्ति महोदय ने एक ऐसी पद्धति को जन्म दिया जो कृष्णमूर्ति पद्धति के नाम से जानी जाती है । इस पद्धति में सटीक फलादेश तक पहुंचने के लिए नवमांश की जगह कालांश से गणना की जाती है ।
नवमांश और कालांश दोनो का आधार वैदिक ज्योतिष है परंतु फिर भी इनके मध्य कई अंतर हैं । कालांश किस प्रकार नवमांश से अलग है इसे समझने के लिए आप कुछ तथ्यों पर दृष्टि डाल सकते हैं। सबसे पहली बात तो यह की नवमांश राशियों का विभाजन है, और कालांश नक्षत्रों का ।
ज्योतिष के प्राचीन वैदिक रूप में हम सूक्ष्म घटनाओं की जानकारी के लिये नवमांश का ही उपयोग करते आये हैं। लेकिन श्री कृष्णमूर्ति ने राशि के बजाय नक्षत्रों के भाग करने की नयी पद्धति विकसित की, जिसके द्वारा और भी सूक्ष्म घटनायें ज्ञात हो सकती हैं। नवमांश में राशि को, और कालांश में नक्षत्र को नौ भागों में बांटा जाता है।
आइये अब इस फर्क को पूर्ण रूप से समझें। नवमांश में एक राशि की अवधि  - 30 डिग्री को 9 बराबर भागों में बाँटा गया है। जिससे हर नवमांश 3 डिग्री 20 मिनट का होता है। नवमांश के सिद्धान्तो से हटकर कालांश नक्षत्रों के 13 डिग्री 20 मिनटों को 9 भागों में बांटता है। लेकिन यह भाग बराबर नहीं है। हर कालांश का स्वामी एक ग्रह बनाया गया है, और उस ग्रह की अवधि विंशोत्तरी दशा के अनुरूप ली गयी है। चुंकि विंशोत्तरी दशा में विभिन्न ग्रहों की अवधि अलग अलग होती है । इसलिए कालांश भी एक समान नहीं होते, अर्थात हर कालांश का मान अलग अलग होता है।
सबसे छोटा कालांश 4 मिनट का, व सबसे बड़ा 2 डिग्री 13 मिनट 20 सेकेन्ड का होता है। कालांश मापक में बहुत छोटा भी हो सकता है जिसके कारण इससे फलादेश वास्तविकता के निकट होता है।
नवमांश और कालांश में संख्याओं का भी अंतर होता है। नवमांश कुल 108 होते हैं जबकि कालांश की कुल संख्या 249 होती है । आप सोच रहे होंगे कि राशियों की कुल संख्या 12 होती है और 9 से विभाजित होने पर इनकी संख्या 108 होती है फिर नक्षत्र 27 हैं और 9 से विभाजन करने पर 243 कालांश होते हैं तो 6 अतिरिक्त कालांश कैसे आ गये। इस प्रश्न का जवाब यह है कि इस पद्धति में कुछ नक्षत्रों के चरण यानी पद अलग अलग राशियों में होते है जैसे मान लीजिए हम चन्द्र का कालांश लेते हैं इसके नक्षत्र के चरण एक राशि में नहीं होते बल्कि कई राशियों से गुजरते हैं जैसे मिथुन, तुला, कुम्भ इसी प्रकार कर्क, वृश्चिक और मीन राशि से। इस प्रकार विभिन्न राशियों में चरण होने से कालांश में 6 जुट जाते हैं।
कृष्णमूर्ति पद्धति में हर कालांश का स्वामित्व ग्रह को दिया गया है, और यह समझा जाता है कि उस कालांश का फल उस ग्रह के अनुसार होगा।
इस क्रम में हम आगे और भी लिखेगें।