Sunday, 10 June 2012

संतान का विवाह कब होगा


आज जिस प्रकार समय बदल रहा है, स्त्रीयां-पुरुषों से कंधो से कंधा मिलाकर साथ चल रही है। एकांकी परिवार होने से घर चलाने के लिए पुरुष के साथ-साथ स्त्री भी सहयोग करने लगी हैं। माता-पिता अपने लडके के लिए पढ़ी-लिखी कन्या बहु के रुप में चाहते हैं, जो उनके पुत्र के साथ-साथ परिवार को भी संभालकर चले। वही कन्या के पिता अपनी पुत्री के लिए योग्य वर की कामना करते हैं।

वर्तमान में जिस प्रकार के आकडे लडके-लडकी के उपलब्ध हुए हैं, असके आधार पर यह हम समझ सकते है की लडकी कि अपेक्षा, लडके के लिए योग्य बहु मिलना कितना मुश्किल होता जा रहा हैं। प्रत्येक माता पिता को अपनी संतान के विवाह कि चिंता सताने लगती हैं, जैसे-जैसे संतान की उम्र बढती जाती है वैसे - वैसे अभिभावक की चिंता। अपने मन में उठने वाले इस प्रश्न के उत्तर के लिए व्यक्ति ज्योषिी के पास जाते हैं।

वैदिक ज्योतिष ही इस प्रश्न का सटीक उत्तर देने में सक्षम हैं कि व्यक्ति का विवाह कब, कहॉ होगा, जिवनसाथी का परिवार कैसा होगा आदि।

विवाह समय निर्धारण के लिये सबसे पहले कुण्डली में विवाह के योग देखे जाते है. इसके लिये सप्तम भाव, सप्तमेश व शुक्र से संबन्ध बनाने वाले ग्रहों का विश्लेषण किया जाता है. जन्म कुण्डली में जो भी ग्रह अशुभ या पापी ग्रह होकर इन ग्रहों से दृ्ष्टि, युति या स्थिति के प्रभाव से इन ग्रहों से संबन्ध बना रहा होता है. वह ग्रह विवाह में विलम्ब का कारण बन रहा होता है.

इसलिये सप्तम भाव, सप्तमेश व शुक्र पर शुभ ग्रहों का प्रभाव जितना अधिक हो, उतना ही शुभ रहता है . तथा अशुभ ग्रहों का प्रभाव न होना भी विवाह का समय पर होने के लिये सही रहता है. क्योकि अशुभ/ पापी ग्रह जब भी इन तीनों को या इन तीनों में से किसी एक को प्रभावित करते है. विवाह की अवधि में देरी होती ही है.

जन्म कुण्डली में जब योगों के आधार पर विवाह की आयु निर्धारित हो जाये तो, उसके बाद विवाह के कारक ग्रह शुक्र  व विवाह के मुख्य भाव व सहायक भावों की दशा- अन्तर्दशा में विवाह होने की संभावनाएं बनती है. आईये देखे की दशाएं विवाह के समय निर्धारण में किस प्रकार सहयोग करती है:-