Thursday 8 May 2014

व्यक्ति भी होता हैं मोबाईल की तरह रिचार्ज

जिस प्रकार मोबाइल को निरंतर उपयोग में लेने के लिए उसे चार्ज करना जरुरी होता हैं। ठीक उसी प्रकार व्यक्ति भी अपने कार्यों को निष्पादन निरंतर करता रहें। इसके लिए उसे उर्जा की आवश्यकता होती हैं। वास्तुशास्त्र में ऐसे कई रहस्य वर्णित हैं। उन्हीं रहस्यों में से एक हैं। दक्षिण दिशा मध्य से दक्षिण-पश्चिम दिशा में शयनकक्ष का विधान।

आज जब वास्तु का प्रचलन बढ रहा हैं तो व्यक्तियों को वास्तु के सामान्य नियमों का ज्ञान हो चला हैं। जैसें:- किचन अग्निकोण में होना चाहिए ,शयनकक्ष दक्षिण दिशा में होना चाहिए। यहाँ उनका चह मानना तो सही हैं कि किचन अग्निकोण में या शयनकक्ष दक्षिण दिशा में होना चाहिए परन्तु

1. एक तो इस बात का कि अग्निकोण या दक्षिण दिशा उनके भुखण्ड में है भी या नही यदि हैं तो वह कहाँ हैं इसका पता उन्हें नही होता हैं। वे अपने भूखण्ड में ही समस्त दिशाएं स्थित हैं ऐसा मानते रहें हैं। जबकि वास्तव में ऐसा नही होता हैं। हमारी पृथ्वी का झुकाव 23.5 Degree का हैं। अर्थात व्यक्ति जो दिशाओ को 0 Degree  मानकर आकलन करता हैं।

2. दूसरा इन नियमों के सैधांतिक पक्ष का पता उन्हें नही होता कि अग्निकोण किचन के लिए या शयनकक्ष दक्षिण दिशा में ही क्यों? प्रतावित हैं।


चित्र-A में नवग्रहो कि दिशाएं बताई गई हैं जिसके अनुसार उर्जा कारक ग्रह मंगल दक्षिण दिशा कि स्वामी हैं। मंगल ग्रह को ज्योतिष शास्त्र में सेनापती कहा गया हैं। सेनापति वह जोकि सम्पूर्ण सेना का नैतृत्व करता हैं। जो सम्पूर्ण सेना का नैतृत्व करे उसमें कितनी उर्जा होगी हम इसमा अंदाजा लगा सकतें हैं साथ ही उसकी बात सेना का प्रत्येक व्यक्ति मानता हैं अर्थात मंगल Commanding Power भी देता हैं। घर का मुखिया भी सेनापति कि तरह ही परिवार में कार्य करता हैं। परिवार कर प्रत्येक सदस्य उसका कहना मानें व समाज में उसका प्रभुत्व बढे इसके लिए उसे मंगल कि उर्जा कि आवश्यक्ता पडती हैं। 


चित्र-B के अनुसार प्रात:काल जब सूर्य पूर्व दिशा से उदय होते हैं तो सूर्य कि Solar Energy ईशानकोण से भूखण्ड में प्रवेश करती हैं जो कि सूर्य के साथ-साथ  नैऋृत्यकोण तक जाती हैं। सूर्य पश्चिम दिशा में अस्त होतें हैं अत: Solar Energy नैऋृत्यकोण तक ही रहती हैं। यह Solar Energy जिसे भूखण्ड ने दिनभर संचित किया था। वह रात भर व्यक्ति को बैटरी कि तरह चार्ज करती हैं यदि यहाँ शयनकक्ष हुआ तो अन्यथा व्यक्ति चार्ज होने से वंचित रह जाएगा।

इस Solar Energy को संचित करने कि लिए ही दक्षिण व पश्चिम दिशा में भारी निमार्ण का विधान वास्तु से संबंधित शास्त्रों में दिया गया हैं। साथ ही यह भी वर्णित हैं कि यदि इन दिशाओं में सूई की नोक के बराबर छिद्र भी हुआ तो घर में Negative Energy प्रवेश कर जाती हैं।

यहाँ ऋषीयों ने व्यक्ति को शयनकक्ष हेतू बाध्य करने के लिए Negative Energy के प्रवेश का उल्लेख किया हैं। हमारे ऋषीमुनि खगोल के ज्ञाता थें। वे जानते थे कि यदि इन दिशाओं में छिद्र हुआ तो सूर्य से प्राप्त Solar Energy संचित नही हो पाएगी वह छिद्र के माध्यम से बाहर चली जाएगी और व्यक्ति चार्ज होने से वंचित रह जाएगा।

सारांश - मंगल ग्रह की उर्जा व सूर्य की Solar Energy जो व्यक्ति ग्रहण करता हैं। दक्षिण दिशा मध्य से दक्षिण-पश्चिम दिशा में शयनकक्ष बनवाकर। वह व्यक्ति निरंतर उन्नति को प्राप्त करता हैं। परिवार के लोगों में तालमेंल, समाज में अपनी प्रतिष्ठा, प्रभूत्व या कार्यक्षेत्र में विकास करने में समर्थ रहता हैं।