Tuesday 26 June 2012

वृषभ के बृहस्पति और आपका भाग्य - Manishaa Saxena


आकाश में स्थित ग्रह अपने मार्ग और अपनी गति से भ्रमण करते हुए एक राशि से दुसरी राशि में प्रवेश करते हैं। "गो" शब्द संस्कृत की "गम्" धातु से बना हैं और इसका अर्थ हैं चलने वाला।
फलित कथन में गोचर वश ग्रहों के भ्रमण का एक अलग ही प्रभाव हैं, जब ज्योतिषी किसी व्यक्ति का भविष्यफल बताता है तो पत्रिका में स्थित सभी पहलूओं के साथ-साथ गोचर का भी विशेष ध्यान रखता हैं। यदि ऐसा नही करेगा तो भविष्यफल सटीक नही होगा।
इसको हम यू समझ सकतें है

1. किसी व्यक्ति के भाग्येश कि दशा चल रही हैं, और उसकी राशि से शनि बारहवें भाव में गोचर अशुभ भाव के स्वामी होकर, उस समय यदि ये कहे की समय अच्छा जायेगा तो सही नही होगा, क्योकि शनि का राशि से बारहवें भाव से गोचर व्यक्ति को साढ़ेसाती लगना कहलाता हैं। राशि से इस भाव में शनि का गोचर अशुभ परिणाम देते हैं, और यदि राशि स्वामी शनि के शत्रु हो तो परिणाम और भी भयावह तो अच्छा समय रहेगा यह हम नही कह सकतें।
2. किसी व्यक्ति के विवाह की बात पिछले 4 महीने से चल रही थी, अचानक मामला थम गया, और पता चला की 2 महीने बाद सगाई हो गई और विवाह की तारीख भी तय हो गई ऐसा कैसे हुआ।
3. किसी का परमोश होना था, 2 महिने के लिए Post-pond हो गया। और किसी का रुका हुआ काम बन गया ऐसा अचानक क्यो होता हैं


 आईये जानें-


प्रत्येक ग्रहों का भ्रमण व्यक्ति पर अलग-अलग प्रभाव डालता  है, प्रत्येक ग्रह के गोचर का समयकाल भी अलग-अलग होता हैं।
शनि और बृहस्पति हमारे नव ग्रहो में सबसे बडे ग्रह है अत: इनका गोचरीय प्रभाव भी लम्बे समय तक रहता है। शनि का  ढाई वर्ष बृहस्पति का एक वर्ष तक गोचरीय प्रभाव रहता है। आज यहा हम बृहस्पति के गोचर की चर्चा करेंगे।

मेष- गोचरवश बृहस्पति द्वितीय भाव में भ्रमण करें तो आपकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होगी, धन में वृद्धि होगी लेकिन व्यय की अधिकता रहेगी। जिसकी पूर्ति के लिए कर्ज भी लेना पड सकता हैं। मान प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी तथा कार्यक्षेत्र में भी उन्नति होगी। वाणी प्रभावशाली रहेगी। रूके हुए कार्य बनेंगे। स्वास्थ्य का ध्यान रखें। पारिवारिक सहयोग मिलेगा।  कुल मिलाकर ये गोचर आपके लिए शुभ रहेगा।

वृषभ- गोचरवश बृहस्पति का प्रथम भाव से गोचर आपके लिए मिलेजुले परिणाम लाया है। ये समय आपको मानसिक दबाव रहेगा। बिना वजह धन खर्च होगा। किसी वजह से आपका मन उदास रह सकता है। ये समय आपका बहुत ही कठिनाईयों भरा रहेगा, जिसकी वजह से आप परेशान रहेंगे। किसी गहन धार्मिक विषय के प्रति आपकी रूचि बढेगी। भाग्य आपका साथ देगा तथा गुरूजनों का एवं बड़ों का आपको सहयोग मिलेगा। धर्म के प्रति आस्था बढ़ेगी। जिन लोगों  के विवाह सम्बन्ध रूके हुए हैं उनमें गति आयेगी।  घर में नए मेहमान (संतान) के आने की सुचना प्राप्त होगी।

मिथुन- व्यवसाय के सम्बन्ध में विदेश यात्रा के योग बनेंगे। निवास स्थान से दूर रहने की स्थितियां उत्पन्न होंगी तथा आप घर से दूर ही रहेंगे। स्वास्थ्य समस्या हो सकती है, जिसके लिए अस्पताल आदि के चक्कर लगाने पड़ेंगे तथा धन खर्च होगा। इसलिए स्वास्थ्य को नजरअंदाज न करें। धार्मिक कार्यों, यात्राओं आदि पर धन खर्च होगा तथा धार्मिक कार्यों में रूचि बढ़ेगी। कर्ज बढेगा।

कर्क- आय में वृद्धि होगी तथा आय के स्रोत भी बढ़ेंगे। बड़ों का सहयोग मिलेगा। छोटी किन्तु लाभदायक यात्राएं होंगी। छोटे भाई-बहनों के जीवन में भी उन्नतिदायक समय है। कार्यक्षेत्र में पदवृद्धि का समय है। नये प्रेम सम्बन्ध भी बन सकते हैं। जो लोग विवाह के योग्य हैं, उनके विवाह की बातो में तेजी आएगी तथा उन्हें इसमें शुभ परिणाम भी मिलेंगे। शत्रु स्वत: ही समाप्त होते चले जाएंगे। 

सिंह-  व्यापारिक एवं कार्यक्षेत्र में उन्नति होगी। पदवृद्धि होगी। व्यवसाय में धनलाभ होगा, कार्यक्षेत्र में प्रतिष्ठित लोगों से मुलाकात होगी। यश प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। कोर्ट, कचहरी के मामलों में फैसले आपके पक्ष में रहेंगे। स्वास्थ्य समस्या यदि कोई चल रही हो तो उसमें सुधार होगा। आर्थिक दृष्टि से ये वर्ष आपके लिए शुभ रहेगा। चल-अचल सम्पति की प्राप्ति होगी।

कन्या-  गुरू के इस गोचर में आपको अपनी फिटनेस के प्रति बहुत ही सजग रहना होगा क्योंकि इस समय आपके वजन में वृद्धि होगी। छोटे भाई-बहनों के लिए समय अच्छा रहेगा, उनके विवाह सम्बन्ध भी हो सकते हैं। धार्मिक यात्राएं होंगी तथा किसी तीर्थस्थान या धार्मिक स्थल पर भी जा सकते हैं। पिता, गुरू अथवा गुरूतुल्य व्यक्तियों का आपको सहयोग प्राप्त होगा, लेकिन आपकी शिक्षा में बाधा उत्पन्न हो सकती है। जिन दंपतियो को अभी तक संतान सुख की प्राप्ति नही हुई है, उन्हें इस विषय में शुभ समाचार प्राप्त होगें।

तुला-  गुरू का यह गोचर आपके लिए बहुत कष्टदायक एवं समस्याओं से भरा हुआ रहेगा। अनावश्यक धन का व्यय होगा। आपको कर्ज लेने की भी आवश्यकता पड़ सकती है। व्यवसाय में हानि हो सकती है। अत्यधिक परिश्रम करना पड़ेगा। कार्यभार बढऩे से अतिरिक्त कार्य भी करना पड़ेगा, जिस कारण खाने-पीने का भी समय निर्धारित नहीं रहेगा। धनहानि के योग है। सम्पत्ति की भी अतिरिक्त देखभाल की जरूरत है, क्योंकि हानि की सम्भावना है। माता के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित रहेंगे। लोकप्रियता में कमी आयेगी। गहन अध्ययन में आपकी रूचि बढ़ेगी लेकिन आपको इसमें बाधाओं का सामना करना पड़ेगा।

वृश्चिक-  गुरू का यह गोचर आपके लिए शुभ रहेगा, बड़े भाई-बहनों का आपको सहयोग मिलेगा एवं उनका स्वास्थ्य भी उत्तम रहेगा। अविवाहितों के विवाह की बातें गति पकड़ेंगी या उनका विवाह होगा, लेकिन विवाहित व्यक्तियों के वैवाहिक जीवन में तनाव की स्थितियां उत्पन्न हो सकती हैं। आप अपनी तरफ से प्रयास करें इससे बचने के। वैवाहिक जीवन में असंतोष बढेगा। अपने से छोटे भाई-बहनों के साथ रिश्तों में गलतफहमी उत्पन्न हो सकती है। इसलिए कोई निर्णय लेने में धैर्य से काम लें। व्यवसाय अच्छा रहेगा। नई कोई साझेदारी हो सकती है। आयवृद्धि होगी एवं आय के नये स्रोत बनेंगे। 

धनु-  बृहस्पति का यह गोचर आपके लिए सामान्य रूप से शुभ रहेगा। स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखने की आवश्यकता है, लापरवाही ना बरतें। वाहन सावधानीपूर्वक चलाएं। व्यवसाय अथवा कार्यक्षेत्र में उन्नति करेंगे। इस समय आपके शत्रु आपका कुछ नहीं बिगाड़ पायेंगे। यदि कोई प्रतिस्पर्धा परीक्षा दे रहे हैं तो उसमें सफलता मिल सकती है। भूमि, भवन एवं पारिवारिक सम्पत्ति के सम्बन्ध में कोई विवाद इस समय उभर सकता है। माता से वैचारिक मतभेद उत्पन्न होंगे। इस समय यात्राओ पर खर्च बढेगा, जोकि लाभदायक सिद्ध होगी। आर्थिक रूप से स्थिति अच्छी बनी रहेगी।
मकर-
गुरू का यह गोचर आपके लिए महत्वपूर्ण एवं भाग्यशाली रहेगा। पद, प्रतिष्ठा में वृद्धि होगी। सन्तान का जन्म हो सकता है या होने की सम्भावना हो सकती है। किसी विशेष विषय के अध्ययन के प्रति आपकी रूचि बढ़ेगी तथा आप उसे ग्रहण भी करेंगे। प्रेम सम्बन्ध स्थापित होंगे। भाग्य आपका साथ देगा। गुरूतुल्य व्यक्तियों का सहयोग मिलेगा। बड़े भाई-बहनों का भी समर्थन मिलेगा। किसी इच्छा की भी पूर्ति होगी, आय बढ़ेगी।

कुंभ- धन सम्पत्ति, पैतृक सम्पत्ति के प्रति बहुत ही सावधानी बरतने की आवश्यकता है, अन्यथा हानि होने की आशंका है। बहुत ज्यादा अनावश्यक धन खर्चे से आर्थिक स्थिति खराब होगी। माता के स्वास्थ्य के प्रति भी सावधानी जरूरी है, उनको स्वास्थ्य कष्ट हो सकता है। कार्यक्षेत्र में अनचाहे स्थान परिवर्तन के योग हैं। घर से दूर जाना पड़ सकता है। मित्रों एवं बड़े भाई-बहनों का सहयोग भी आपको नहीं मिलेगा तथा उनसे आपके सम्बन्ध भी खराब होंगे। अनावश्यक यात्रा पर धन खर्च होगा। अस्पतालों के चक्कर लगाने पड़ेंगे। अत्यधिक खर्चे एवं हानि के योग हैं। गुरू का यह गोचर आपके लिए बहुत अधिक शुभ परिणाम लेकर नहीं आया, अत: सावधानीपूर्वक यह वर्ष निकालें। अपनी प्रत्येक व्यक्ति, वस्तु के प्रति अतिरिक्त सजग रहें, अन्यथा हानि की सम्भावना है।

मीन- लम्बी अथवा छोटी दोनों की तरह की यात्राएं होंगी तथा आपको इनसे लाभ भी होगा। पराक्रम में इस समय वृद्धि होगी। व्यवसाय अथवा नौकरी में परेशानी के बाद भी आप कोई महत्वपूर्ण एवं साहस भरा निर्णय लेने से पीछे नहीं हटेंगे। जो लोग अविवाहित हैं, उनके विवाह हो सकते हैं। भाग्य आपका साथ देगा। धार्मिक स्थानों की यात्रा करेंगे। आय के स्रोत बढ़ेंगे। इच्छाओं की पूर्ति होगी। बड़ों का सहयोग भी प्राप्त होगा।

Monday 25 June 2012

बालो से जाने व्यक्ति का स्वभाव

आप सभी ने चेहरे से भविष्य ,स्वभाव,हस्त रेखा से व्यक्ति का स्वाभाव समझते हुए तो सुना और देखा होगा! परन्तु हमारे बाल भी हमारे मस्तिष्क में चल रहे विचारों और स्वाभाव को प्रदर्शित करते है! किसी के बालो को देखकर आप आसानी से उसकी मनोवृति को जान सकते है!
सीधे बालो वाले व्यक्ति का स्वाभाव भी सीधा और सरल होता है ! ऐसे लोग स्पस्थ्वादिता पैर विश्वास करते है ! न झूठ बोलना और न ही सुनना इन्हें पसंद होता है! इनका जीवन एक खुली किताब की तरह से होता है! कोई भी आसानी से इनके हाव भाव देखकर दिल की बाते जान सकता है!
  • घुंगराले बालो वाले व्यक्ति का स्वाभाव भी उलझा हुआ होता है! इनके सामने हमेशा असमंजस की स्थिति रहती है! जब भी कोई कार्य करने जाते है! हमेशा दो रास्ते इनके सामने होते है! थोड़े संकोची और धेर्यहीन होते है! एक निर्णय पर रहना या अपना वादा पूरा करना इनके सामने एक बड़ी समस्या होती है!
  • लहरदार या जिनके बाल थोड़े घुमावदार होते है! ऐसे व्यक्ति अपनी पसंद से काम करना पसंद करते है! थोड़े जुगाडू और मेंहनत से सफल होते है! समय के साथ बदलना इनकी मुख्य आदत में शुमार होता है! एकाग्रता की कमी होती है!
  • रूखे बाल वाले व्यक्ति का स्वाभाव कुछ अलग होता है ! ऐसे व्यक्ति कभी किसी का दिल नही दुखाते है! चाहे उसके लिए उन्हें खुद कितनी भी परेशानी सहन करनी पड़े! सिधान्तो पर टिके रहते है! समय के साथ न बदलने के कारन लोगो की उपेक्षा का शिकार होते है!
  • जिन व्यक्ति के बाल नरम और पतले होते है! उनका मन एक दम पानी की तरह निर्मल होता है! जिन पर किसी का भी रंग चड जाता है! इसी वजह से ये किसी की बात में जल्दी से आ जाते है! एक दम बच्चो की तरह सरल होते है! भावनात्मक होते है! जिस कारन ये एक अच्छे कलाकार सवित होते है!
  • जिन व्यक्तियों के बाल थोड़े मोटे और भारी होते है! ऐसे व्यक्ति दूसरों को जीवन की महता  और दूसरों के अंदर खोये हुए आत्मविश्वास जगाने के गुण विदमान होता है! बहुत मेहनती होते है! चाहे कितनी भी परेशानी क्यों न आ जाये कभी भी हार नही मानते है! अपने लक्ष्य से भटकते नही है! पूरी निष्ठां से  विस्वास से कार्य करते है! पाककला में निपूर्ण होते है! खाना बनाना और खाने के शोकीन होते है!
  • जिन्हें अपने बाल हमेशा खुले रखने पसंद होते है! ऐसे व्यक्ति खुले विचारों के और स्वतंत्र रहना पसंद होता है! बाहर घूमना ,नौकरी करना इन्हें पसंद होता है!
  • जिन्हें अपने बाल आधे बंधे और आधे खुले रखना पसंद होता है! ऐसे व्यक्ति हर परिस्थिति में अपने को ढाल लेते है! थोड़ी सी आजादी और थोड़ी सी बंदिश पसंद होती है! ऐसे व्यक्ति अपनी सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों को बखूबी सँभालते है! दूसरों की बाते एक सीमा तक सुनते है!
  • जिन व्यक्ति के बाल एक दम बढे गुथे हुए होते है! ऐसे लोगो का स्वाभाव भी इसी तरह से संकोची होता है! खुले विचारों और माहौल को आसानी से नही अपना पाते है! परम्पराओ में घिरे रहना और उसे निभाना इन्हें पसंद होता है! ऐसे व्यक्ति घर में रहना पसंद करते है और महिलाये सुगड गृहणी बनती है! इनके बहुत सारे मित्र भी नही होते है! और कम बोलना पसंद करते है! अपने रहस्य किसी के साथ नही बाटते है!आप सभी ने चेहरे से भविष्य ,स्वभाव,हस्त रेखा से व्यक्ति का स्वाभाव समझते हुए तो सुना और देखा होगा! परन्तु हमारे बाल भी हमारे मस्तिष्क में चल रहे विचारों और स्वाभाव को प्रदर्शित करते है! किसी के बालो को देखकर आप आसानी से उसकी मनोवृति को जान सकते है!
  • सीधे बालो वाले व्यक्ति का स्वाभाव भी सीधा और सरल होता है ! ऐसे लोग स्पस्थ्वादिता पैर विश्वास करते है ! न झूठ बोलना और न ही सुनना इन्हें पसंद होता है! इनका जीवन एक खुली किताब की तरह से होता है! कोई भी आसानी से इनके हाव भाव देखकर दिल की बाते जान सकता है!
  • घुंगराले बालो वाले व्यक्ति का स्वाभाव भी उलझा हुआ होता है! इनके सामने हमेशा अस्मंज्हस की स्थिति रहती है! जब भी कोई कार्य करने जाते है! हमेशा दो रास्ते इनके सामने होते है! थोड़े संकोची और धेर्यहीन होते है! एक निर्णय पर रहना या अपना वादा पूरा करना इनके सामने एक बड़ी समस्या होती है!
  • लहरदार या जिनके बाल थोड़े घुमावदार होते है! ऐसे व्यक्ति अपनी पसंद से काम करना पसंद करते है! थोड़े जुगाडू और मेंहनत से सफल होते है! समय के साथ बदलना इनकी मुख्य आदत में शुमार होता है! एकाग्रता की कमी होती है!
  • रूखे बाल वाले व्यक्ति का स्वाभाव कुछ अलग होता है ! ऐसे व्यक्ति कभी किसी का दिल नही दुखाते है! चाहे उसके लिए उन्हें खुद कितनी भी परेशानी सहन करनी पड़े! सिधान्तो पर टिके रहते है! समय के साथ न बदलने के कारन लोगो की उपेक्षा का शिकार होते है!
  • जिन व्यक्ति के बाल नरम और पतले होते है! उनका मन एक दम पानी की तरह निर्मल होता है! जिन पर किसी का भी रंग चड जाता है! इसी वजह से ये किसी की बात में जल्दी से आ जाते है! एक दम बच्चो की तरह सरल होते है! भावनात्मक होते है! जिस कारन ये एक अच्छे कलाकार सवित होते है!
  • जिन व्यक्तियों के बाल थोड़े मोटे और भारी होते है! ऐसे व्यक्ति दूसरों को जीवन की महता  और दूसरों के अंदर खोये हुए आत्मविश्वास जगाने के गुण विदमान होता है! बहुत मेहनती होते है! चाहे कितनी भी परेशानी क्यों न आ जाये कभी भी हार नही मानते है! अपने लक्ष्य से भटकते नही है! पूरी निष्ठां से  विस्वास से कार्य करते है! पाककला में निपूर्ण होते है! खाना बनाना और खाने के शोकीन होते है!
  • जिन्हें अपने बाल हमेशा खुले रखने पसंद होते है! ऐसे व्यक्ति खुले विचारों के और स्वतंत्र रहना पसंद होता है! बाहर घूमना ,नौकरी करना इन्हें पसंद होता है!
  • जिन्हें अपने बाल आधे बंधे और आधे खुले रखना पसंद होता है! ऐसे व्यक्ति हर परिस्थिति में अपने को ढाल लेते है! थोड़ी सी आजादी और थोड़ी सी बंदिश पसंद होती है! ऐसे व्यक्ति अपनी सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों को बखूबी सँभालते है! दूसरों की बाते एक सीमा तक सुनते है!
  • जिन व्यक्ति के बाल एक दम बढे गुथे हुए होते है! ऐसे लोगो का स्वाभाव भी इसी तरह से संकोची होता है! खुले विचारों और माहौल को आसानी से नही अपना पाते है! परम्पराओ में घिरे रहना और उसे निभाना इन्हें पसंद होता है! ऐसे व्यक्ति घर में रहना पसंद करते है और महिलाये सुगड गृहणी बनती है! इनके बहुत सारे मित्र भी नही होते है! और कम बोलना पसंद करते है! अपने रहस्य किसी के साथ नही बाटते है!

Sunday 24 June 2012

क्या कहते है ग्रह आपके बारे में?

हमारे नवग्रह मण्डल में सूर्य, चन्द्रमा, मंगल बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि राहू एवं केतु आदि नौ ग्रह सम्मिलित हैं। सम्पूर्ण संसार इन्हीं नवग्रहों के अधीन है। प्रत्येक व्यक्ति के  क्रियाकलाप, कार्य करने का , सोचने का ढंग अलग-अलग होता है। प्रत्येक व्यक्ति पर किसी विशेष ग्रह का प्रभाव होता है, जिसके अधीन रहकर वह अपने जीवन को व्यतीत करता है। कोई भी दो व्यक्तियों की प्रकृति समान नहीं होती है,क्योंकि ग्रहों की प्रकृति भिन्न होती है। जिस व्यक्ति की जन्मपत्रिका में जो ग्रह बलवान होता हैं, उस व्यक्ति का स्वभाव, आचरण, कार्यशैली भी उस ग्रह के अनुसार ही हो जाती हैं। अब हम यह देखने व समझने का प्रयास करेंगे कि किसी व्यक्ति विशेष पर किस ग्रह विशेष का सर्वाधिक प्रभाव है, उसके लिए हमें ग्रहों की प्रकृति का ज्ञान होना आवश्यक है। 

आइये जाने अपने आप को:-

सूर्य-
नवग्रह मण्डल में सूर्य को राजा की पदवी दी गई है, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति में राजसी गुणों की अधिकता होती है। नीतियां बनाना, आदेश देना तथा आदेश का पालन न होने पर क्रोधित होना। लेकिन अन्याय बर्दाश्त नहीं करते हैं। इन्हें इनकी स्वतन्त्रता बहुत  प्रिय होती है, जिसके चलते किसी से आदेशित होना इन्हें नागवार गुजरता है और इसी वजह से ये थोड़े से लापरवाह भी हो जाते हैं। सूर्य प्रधान व्यक्तियों की नजरें बहुत तेज होती हैं। शरीर पर बाल बहुत कम होते हैं। सूर्य प्रधान व्यक्ति अत्यधिक ऊर्जावान होते हैं, ये बहुत देर तक खाली नहीं रह सकते या ये कहें कि ये कभी रिटायरमेन्ट लेकर घर पर नहीं बैठ सकते।

चन्द्रमा-
क्योंकि चन्द्रमा जलीय ग्रह है, इसलिए चन्द्र प्रधान व्यक्तियों की शारीरिक बनावट स्थूल होती है। स्वभाव में चंचलता अधिक होती है, इसलिए मन हमेशा चलायमान रहता है। ये लोग एक जगह स्थिर होकर ज्यादा देर तक नहीं बैठ सकते। इनके मस्तिष्क में सदैव कुछ न कुछ चलता रहता है। ये कल्पनालोक में अधिक रहते हैं। बड़ी-बड़ी योजनाएं बनाते बहुत हैं पर उन पर अमल कम करते हैं। इनमें स्त्रियोचित गुण अधिक पाये जाते हैं। ये शारीरिक मेहनत कम करते हैं। स्वभाव से कोमल होते हैं। सभी के प्रति स्नेहमय इनका व्यवहार होता है। 

मंगल-
मंगल अग्नि तत्व ग्रह है, इसलिए मंगल प्रधान व्यक्ति आपको कभी भी मोटे नहीं मिलेंगे, विशेषकर इनकी कमर पतली होती है। चेहरे पर कोई तिल, मस्सा अथवा चोट का निशान जरूर मिलता है। आईब्रो अथवा उसके आसपास कट का निशान जरूर मिलता है। ये लोग शीघ्र ही क्रोधित हो जाते हैं। किसी भी कार्य में जल्दबाजी अथवा उतावलापन दिखाना जैसे इनके स्वभाव में ही सम्मिलित होता है। एक क्षण के लिए भी शांत नहीं बैठते हैं, कुछ न कुछ करते ही रहेंगे। किसी भी बात को ऐसे ही स्वीकार नहीं करते तर्क जरूर करते हैं। मंगल प्रधान व्यक्तियों से आप आंखें मिलाकर बात नहीं कर सकते हैं। किसी भी कार्य में पहल करने से पीछे नहीं रहते। साहसी होते हैं। इनकी दृष्टि से कोई भी बात नहीं छूटती है। बाज जैसी दृष्टि आप कह सकते हैं। इनके बाल बहुत सुन्दर होते हैं। काले, घने और घुंघराले। ये अपनी आयु से हमेशा कम ही प्रतीत होते हैं। व्यवहार में व्यवस्थित होते हैं तथा कोई भी कार्य पूर्वयोजना बनाकर ही करते हैं। स्वभाव से उदार होते हैं।

बुध-
बुध व्यावसायिक प्रकृति का ग्रह है, जिस कारण बुध प्रधान जातक हर काम में अपने लाभ ढूंढ ही लेता है। हर बात में सौदेबाजी करना इनका स्वभाव होता है। बुध प्रधान जातक बोलते बहुत हैं, लेकिन आकर्षक बोलते हैं। इनके लिए लोगों से सम्पर्क बनाना बहुत ही आसान है। इसलिए ये किसी भी उम्र के व्यक्ति के साथ आसानी से घुलमिल जाते हैं। किसी व्यक्ति से लाभ कैसे लेना है, ये इन्हे बखूबी आता है। शारीरिक श्रम से ये बचते हैं। मस्तिष्क के कार्य आप इनसे जितने ही करवा लें। ये जो भी बोलते हैं, उसको समझना हर किसी के बस की बात नहीं होती है। इनका रंग सांवला, लेकिन व्यक्तित्व आकर्षक होता है। अपने पहनावे पर ये ज्यादा समय बर्बाद नहीं करते हैं। धन संग्रह करना इनका मुख्य शौक है, ये अपव्ययी नहीं होते हैं।

बृहस्पति-
बृहस्पति प्रधान जातक औसत कद-काठी के होते हैं, न बहुत अधिक ना ही बहुत कम। आंखों का रंग पीलापन लिए होता है। बालों का एवं भौंहों का रंग भूरा अथवा कत्थई होता है। कम आयु में ही बाल सफेद हो जाते हैं तथा गंजापन आ जाता है, लेकिन यह ध्यान रखें कि ये आनुवांशिक न हो। ये शांत एवं गम्भीर स्वभाव के होते हैं। ज्यादा भीड़ वाली जगह में रहना पसन्द नहीं करते, बल्कि एकान्त में रहकर अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निरन्तर प्रयासरत रहते हैं। इनकी विद्वता इनके चेहरे से ही प्रतीत होती है। शास्त्रों एवं गम्भीर विषयों में इनकी रूचि होती है। ये ज्ञानी एवं अपने विषय में दक्ष होते हैं। कार्य नियमबद्ध तरीके से करना इन्हें पसन्द होता है और इनके व्यवहार में भी ये शामिल होता है। शिक्षण इनकी पहली पसन्द होता है।

शुक्र-
शुक्र प्रधान जातक देखने में सुन्दर एवं आकर्षक व्यक्तित्व के धनी होते हैं। कोई भी आसानी से इनकी ओर आकर्षित हो जाता है। इनको खुद को संवारने में विशेष रूचि होती है। सौन्दर्य के लिए उपयोग होने वाली प्रत्येक वस्तु यथा-वस्त्र, इत्र, ज्वैलरी आदि हर चीज में इन्हें रूचि होती है।
शुक्र स्त्रीकारक ग्रह होने से शुक्र प्रधान जातकों में स्त्रियोचित गुण अधिक पाये जाते हैं। ये वैसे तो सदैव नए वस्त्र पहनना ही पसन्द करते हैं लेकिन ये पुराने वस्त्र एवं अन्य वस्तुओं को भी बहुत ही सलीके से पहनते हैं। हर सुन्दर चीज से इन्हें प्रेम होता है।
ये व्यक्ति स्वभाव से रोमांटिक होते हैं। बाल काले एवं घुंघराले होते हैं, व्यवस्थित जीवनशैली होती है। संगीत एवं मनोरंजन में रूचि रखते हैं। विपरीत लिंग के प्रति विशेष झुकाव होता है। ज्यादातर उन्हीं से घिरे रहते हैं और उनमें लोकप्रिय भी होते हैं।

शनि-
शनि प्रधान जातक का रंग सांवला होता है। ये शान्त, गम्भीर एवं सोच विचार कर कार्य करने की प्रवृत्ति के होते हैं, किसी भी कार्य में जल्दबाजी नहीं होती, बल्कि औरों से धीमी गति होती है कोई भी कार्य करने की। इनके विचार स्थिरता लिए होते हैं, किसी की बातों में नहीं आते। व्यवहारिक ज्ञान अच्छा होता है, जिससे लोगों से व्यवहार बनाने में चतुर होते हैं। किसी व्यक्ति के अन्दर क्या योग्यता है, उनसे कैसे काम लेना है ये इन्हें अच्छी तरह से आता है, किसी की योग्यता को निखारने का काम अच्छे से करते हैं। दूरदर्शिता होती है। हमेशा सभी बिन्दुओं पर विचार करके कार्य करते हैं।

राहू-केतु -
राहू से प्रभावित व्यक्ति योजना बनाकर काम करते हैं, लेकिन काम करने से पहले बोलते नहीं हैं। इनके मन की थाह पाना बहुत ही मुश्किल होता है। सोचविचार कर अपना लाभ-हानि देखकर कार्य करते हैं। स्वार्थी एवं दुष्ट प्रवृत्ति होती है। महत्वाकांक्षी होते हैं। दूसरों के विषय में तो सब कुछ जानने की इच्छा रखते हैं लेकिन अपने बारे में कुछ भी  बताना पसन्द नहीं करते हैं। अपने कार्य  में  किसी की दखलअंदाजी इन्हें पसन्द नहीं। दूसरों में कमियां निकालना इन्हें बहुत प्रिय होता है।

अपने बारे में जानने के लिए Click करें -

Sunday 10 June 2012

नवमांश और कालांश में विभेद (कृष्णमूर्ति पद्धति के माध्यम से)


प्राचीन काल में ऋषि त्रि-कालदर्शी होते थे। त्रि -कालदर्शी अर्थात भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों पर उनकी दृष्टि रहती थी। आज वक्त बदल गया है और हमारी जीवनशैली में भी काफी बदलाव आ गया है। अब न तो हमारे पास धैर्य है और न तो इतनी साधना करने का साहस है।
आज भूत, भविष्य तो क्या वर्तमान को समझना भी हम लोगों के लिए कठिन हो गया है। इस स्थिति में परम पिता ब्रह्मा द्वारा प्रदान किया गया वेद और उसमें वर्णित ज्योतिष हमारे लिए बहुत ही लाभप्रद और उपयोगी है। वैदिक ज्योतिष की इस महान विधा से व्यक्ति के जीवन की सभी घटनाओ की जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
वैदिक ज्योतिष अपने आप में रहस्य का भंडार है । वैदिक ज्योतिष की गूढ़ता को कम करने और नई पीढियों के लिए इसे और भी आसान बनाने व सटीक फलादेश के लिए हर युग में महान ज्योतिषशास्त्रियों ने शोध किये जिससे कई नये तथ्य उभरकर सामने आये। 20वीं सदी के महान दक्षिण भारतीय ज्योतिषशास्त्री कृष्णमूर्ति महोदय ने एक ऐसी पद्धति को जन्म दिया जो कृष्णमूर्ति पद्धति के नाम से जानी जाती है । इस पद्धति में सटीक फलादेश तक पहुंचने के लिए नवमांश की जगह कालांश से गणना की जाती है ।
नवमांश और कालांश दोनो का आधार वैदिक ज्योतिष है परंतु फिर भी इनके मध्य कई अंतर हैं । कालांश किस प्रकार नवमांश से अलग है इसे समझने के लिए आप कुछ तथ्यों पर दृष्टि डाल सकते हैं। सबसे पहली बात तो यह की नवमांश राशियों का विभाजन है, और कालांश नक्षत्रों का ।
ज्योतिष के प्राचीन वैदिक रूप में हम सूक्ष्म घटनाओं की जानकारी के लिये नवमांश का ही उपयोग करते आये हैं। लेकिन श्री कृष्णमूर्ति ने राशि के बजाय नक्षत्रों के भाग करने की नयी पद्धति विकसित की, जिसके द्वारा और भी सूक्ष्म घटनायें ज्ञात हो सकती हैं। नवमांश में राशि को, और कालांश में नक्षत्र को नौ भागों में बांटा जाता है।
आइये अब इस फर्क को पूर्ण रूप से समझें। नवमांश में एक राशि की अवधि  - 30 डिग्री को 9 बराबर भागों में बाँटा गया है। जिससे हर नवमांश 3 डिग्री 20 मिनट का होता है। नवमांश के सिद्धान्तो से हटकर कालांश नक्षत्रों के 13 डिग्री 20 मिनटों को 9 भागों में बांटता है। लेकिन यह भाग बराबर नहीं है। हर कालांश का स्वामी एक ग्रह बनाया गया है, और उस ग्रह की अवधि विंशोत्तरी दशा के अनुरूप ली गयी है। चुंकि विंशोत्तरी दशा में विभिन्न ग्रहों की अवधि अलग अलग होती है । इसलिए कालांश भी एक समान नहीं होते, अर्थात हर कालांश का मान अलग अलग होता है।
सबसे छोटा कालांश 4 मिनट का, व सबसे बड़ा 2 डिग्री 13 मिनट 20 सेकेन्ड का होता है। कालांश मापक में बहुत छोटा भी हो सकता है जिसके कारण इससे फलादेश वास्तविकता के निकट होता है।
नवमांश और कालांश में संख्याओं का भी अंतर होता है। नवमांश कुल 108 होते हैं जबकि कालांश की कुल संख्या 249 होती है । आप सोच रहे होंगे कि राशियों की कुल संख्या 12 होती है और 9 से विभाजित होने पर इनकी संख्या 108 होती है फिर नक्षत्र 27 हैं और 9 से विभाजन करने पर 243 कालांश होते हैं तो 6 अतिरिक्त कालांश कैसे आ गये। इस प्रश्न का जवाब यह है कि इस पद्धति में कुछ नक्षत्रों के चरण यानी पद अलग अलग राशियों में होते है जैसे मान लीजिए हम चन्द्र का कालांश लेते हैं इसके नक्षत्र के चरण एक राशि में नहीं होते बल्कि कई राशियों से गुजरते हैं जैसे मिथुन, तुला, कुम्भ इसी प्रकार कर्क, वृश्चिक और मीन राशि से। इस प्रकार विभिन्न राशियों में चरण होने से कालांश में 6 जुट जाते हैं।
कृष्णमूर्ति पद्धति में हर कालांश का स्वामित्व ग्रह को दिया गया है, और यह समझा जाता है कि उस कालांश का फल उस ग्रह के अनुसार होगा।
इस क्रम में हम आगे और भी लिखेगें।

सुख समृद्धि प्राप्ति के लिए करें ये उपाय


प्रत्येक व्यक्ति की यह इच्छा रहती है कि असका जीवन सुखपूर्ण  रहें, कभी किसी चीज की कमी न हो, सुन्दर घर, नोकर-चाकर, गाडिया, महंगा मोबाईन फोन हो, किसी को तो यह सुविधा जन्मजात ही नसीब होती है, किसी को मेहनत से प्राप्त होती है और किसी को प्राप्त ही नही होती हैं। ऐसा क्यों ? होता है, आइये जाने।
सम्पूर्ण भोग विलास की चीजों का क्षेत्राधिकार ग्रहो में शुक्र  ग्रह को प्राप्त हैं, जनकी पत्रिका में ये शुभ भावगत, बली होते है, उन्हें उपरोक्त चीजों का सुख प्राप्त होता हैं। जिनकी पत्रिका में कमजोर होते हैं, उन्हें उपरोक्त चीजों का सुख प्राप्त नही होता हैं। ऐसा नही हैं कि  कमजोर शुक्र को बली नही बनाया जा सकता हैं। शुक्र ही नही प्रत्येक ग्रह को बली बनाया जा सकता हैं। यहा हम शुक्र  ग्रह को बली बनाने के उपाय के बारे में चर्चा करेंगे।
ग्रहों में शुक्र को विवाह व वाहन का कारक ग्रह कहा गया है। शुक्र के उपाय करने से वैवाहिक सुख की प्राप्ति की संभावनाएं बनती है।
शुक्र ग्रह के उपाय
1.         शुक्र की वस्तुओं से स्नान - ग्रह की वस्तुओं से स्नान करना उपायों के अन्तर्गत आता है. शुक्र का स्नान उपाय करते समय जल में बडी इलायची डालकर उबाल कर इस जल को स्नान के पानी में मिलाया जाता है . इसके बाद इस पानी से स्नान किया जाता है. स्नान करने से वस्तु का प्रभाव व्यक्ति पर प्रत्यक्ष रुप से पडता है. तथा शुक्र के दोषों का निवारण होता है।
यह उपाय करते समय व्यक्ति को अपनी शुद्धता का ध्यान रखना चाहिए। तथा उपाय करने कि अवधि के दौरान शुक्र देव का ध्यान करने से उपाय की शुभता में वृ्द्धि होती है। इसके दौरान शुक्र मंत्र का जाप करने से भी शुक्र के उपाय के फलों को सहयोग प्राप्त होता है।

2.           शुक्र की वस्तुओं का दान - शुक्र की दान देने वाली वस्तुओं में घी व चावन  का दान किया जाता है।  इसके अतिरिक्त शुक्र क्योकि भोग-विलास के कारक ग्रह है। इसलिये सुख- आराम की वस्तुओं का भी दान किया जा सकता है। बनाव -श्रंगार की वस्तुओं का दान भी इसके अन्तर्गत किया जा सकता है । दान क्रिया में दान करने वाले व्यक्ति में श्रद्धा व विश्वास होना आवश्यक है। तथा यह दान व्यक्ति को अपने हाथों से करना चाहिए। दान से पहले अपने बडों का आशिर्वाद लेना उपाय की शुभता को बढाने में सहयोग करता है।

3.                  शुक्र मन्त्र का जाप -  शुक्र के इस उपाय में निम्न श्लोक का पाठ किया जाता है।

"ऊँ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा "

शुक्र के अशुभ गोचर की अवधि या फिर शुक्र की दशा में इस श्लोक का पाठ प्रतिदिन या फिर शुक्रवार के दिन करने पर इस समय के अशुभ फलों में कमी होने की संभावना बनती है। मुंह के अशुद्ध होने पर मंत्र का जाप नहीं करना चाहिए। ऐसा करने पर विपरीत फल प्राप्त हो सकते है।

वैवाहिक जीवन की परेशानियों को दूर करने के लिये इस श्लोक का जाप करना लाभकारी रहता है । वाहन दुर्घटना से बचाव करने के लिये यह मंत्र लाभकारी रहता है।
4.                शुक्र का यन्त्र  - शुक्र के अन्य उपायों में शुक्र यन्त्र का निर्माण करा कर उसे पूजा घर में रखने पर लाभ प्राप्त होता है। शुक्र यन्त्र की पहली लाईन के तीन खानों में 11,6,13 ये संख्याये लिखी जाती है। मध्य की लाईन में 12,10, 8 संख्या होनी चाहिए। तथा अन्त की लाईन में 07,14,9 संख्या लिखी जाती है।
शुक्र यन्त्र में प्राण प्रतिष्ठा करने के लिये किसी जानकार पण्डित की सलाह ली जा सकती है. यन्त्र पूजा घर में स्थापित करने के बाद उसकी नियमित रुप से साफ-सफाई का ध्यान रखना चाहिए.

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कब बनेगें आप धनवान


जब हम किसी पत्रिका का फलकथन करतें है तो हम राशि, लग्न, महादशा, ग्रहों की दृष्टि, युति, गोचरीय भ्रमण, ग्रहों का बलाबल आदि का ध्यान रखते हैं, किन्तु सिर्फ इतना  ही काफी नही है कई और भी आधार है पत्रिका में जिनका ध्यान हमें रखना चाहिए यथा:- मान लीजीए किसी व्यक्ति की मेष लग्न की पत्रिका में सूर्य या चन्द्रमॉ में से कोई भी त्रिकोण या केन्द्र (केवल सप्तम भाव को छोडकर)में हो तो यह राजयोग कहलाता हैं। तो हम कहेंगे की जब योगकारक ग्रह की दशा-अन्र्तदशा आएगी तो व्यक्ति दिनदुगनी रातचौगुनी तरक्की करेगा। इसी क्र म में जैसे मेष राशि वाला व्यक्ति बिना सोचे समझें निर्णय लेने वाला, जबकि तुला राशि वाला सोच समझकरा निर्णय लेने वाला, वृश्चिक राशि वाला अपनी बारी का इन्तजार करनेे वाला होता है अन्य राशियों के  भी अपने-अपने ही विचार होते हैं। यहाँ हमने सिर्फ राशि की ही बात कहीं है, अन्य प्रभावो को नही लिया है।

ठीक उसी प्रकार पत्रिका में योग भी अपना अलग ही महत्व रखतें है ।  जैसें :-

1. यदि किसी व्यक्ति की पत्रिका में पंचम में राहू हो और पंचमेश 8वें या 12वें भाव स्थित होकर मंगल,शनि से दृष्ट हो और पंचम भाव व पंचमेंश पर किसी शुभ ग्रह की दृष्ट न हो तो यह काकबंध्या योग (संतान न होने का योग)कहलाता हैं। इस योग के परिणाम स्वरुप व्यक्ति को संतान की प्राप्ति नही होगी।

2. नवम भाव का स्वामी लग्न से 6,8 या 12 वें भाव में हो तो निर्भाग्य योग होता हैं। ऐसा व्यक्ति यदि करोडपति के घर भी क्यो न जनमा हो कंगाल हो जाता हैं।

ज्योतिषशास्त्र की दृष्टि में धन वैभव और सुख के लिए कुण्डली में मौजूद धनदायक योग या लक्ष्मी योग काफी महत्वपूर्ण होते हैं. जन्म कुण्डली एवं चंद्र कुंडली में विशेष धन योग तब बनते हैं जब जन्म व चंद्र कुंडली में यदि द्वितीय भाव का स्वामी एकादश भाव में और एकादशेश दूसरे भाव में स्थित हो अथवा द्वितीयेश एवं एकादशेश एक साथ व नवमेश द्वारा दृष्ट हो तो व्यक्ति धनवान होता है।

शुक्र की द्वितीय भाव में स्थिति को धन लाभ के लिए बहुत महत्व दिया गया है, यदि शुक्र द्वितीय भाव में हो और गुरु सातवें भाव, चतुर्थेश चौथे भाव में स्थत हो तो व्यक्ति राजा के समान जीवन जीने वाला होता है. ऐसे योग में साधारण परिवार में जन्म लेकर भी जातक अत्यधिक संपति का मालिक बनता है। सामान्य व्यक्ति भी इन योगों के रहते उच्च स्थिति प्राप्त कर सकता है.

आज हम यहाँ प्रत्येक लग्न के लिए बनने वाले लक्ष्मी (धन) योग की चर्चा करेगें।


1.    मेष लग्न के लिए धन योग
लग्नेश मंगल कर्मेश शनि और भाग्येश गुरु पंचम भाव में होतो धन योग बनता है.
इसी प्रकार यदि सूर्य पंचम भाव में हो और गुरु चंद्र एकादश भाव में हों तो भी धन योग बनता है और जातक अच्छी धन संपत्ति पाता है.
2.    वृष लग्न के लिए धन योग
मिथुन में शुक्र, मीन में बुध तथा गुरु केन्द्र में हो तो अचानक धन लाभ मिलता है. इसी प्रकार यदि शनि और बुध दोनों दूसरे भाव में मिथुन राशि में हों तो खूब सारी धन संपदा प्राप्त होती है.
3.    मिथुन लग्न के लिए धन योग
नवम भाव में बुध और शनि की युति अच्छा धन योग बनाती है. यदि चंद्रमा उच्च का हो तो पैतृक संपत्ति से धन लाभ प्राप्त होता है.
4.    कर्क लग्न के लिए धन योग
यदि कुण्डली में शुक्र दूसरे और बारहवें भाव में हो तो जातक धनवान बनता है. अगर गुरू शत्रु भाव में स्थित हो और केतु के साथ युति में हो तो जातक भरपूर धन और ?श्वर्य प्राप्त करता है.
5.    सिंह लग्न के लिए धन योग
शुक्र चंद्रमा के साथ नवांश कुण्डली में बली अवस्था में हो तो व्यक्ति व्यापार एवं व्यवसाय द्वारा खूब धन कमाता है. यदि शुक्र बली होकर मंगल के साथ चौथे भाव में स्थित हो तो जातक को धन लाभ का सुख प्राप्त होता है.
6.    कन्या लग्न के लिए धन योग
शुक्र और केतु दूसरे भाव में हों तो अचानक धन लाभ के योग बनते हैं. यदि कुण्डली में चंद्रमा कर्म भाव में हो तथा बुध लग्न में हो व शुक्र दूसरे भाव स्थित हो तो जातक अच्छी संपत्ति संपन्न बनता है.
7.    तुला लग्न के लिए धन योग
कुण्डली में दूसरे भाव में शुक्र और केतु हों तो जातक को खूब धन संपत्ति प्राप्त होती है. अगर मंगल, शुक्र, शनि और राहु बारहवें भाव में होंतो व्यक्ति को अतुल्य धन मिलता है.
8.    वृश्चिक लग्न के लिए धन योग
कुण्डली में बुध और गुरू पांचवें भाव में स्थित हो तथा चंद्रमा एकादश भाव में हो तो व्यक्ति करोड़पति बनता है.
यदि चंद्रमा, गुरू और केतु दसवें स्थान में होंतो जातक धनवान व भाग्यवान बनता है.
9.    धनु लग्न के लिए धन योग
कुण्डली में चंद्रमा आठवें भाव में स्थित हो और सूर्य, शुक्र तथा शनि कर्क राशि में स्थित हों तो जातक को बहुत सारी संपत्ति प्राप्त होती है. यदि गुरू बुध लग्न मेषों तथा सूर्य व शुक्र दुसरे भाव में तथा मंगल और राहु छठे भाव मे हों तो अच्छा धन लाभ प्राप्त होता है.
10.    मकर लग्न के लिए धन योग
जातक की कुण्डली में चंद्रमा और मंगल एक साथ केन्द्र के भावों में हो या त्रिकोण भाव में स्थित हों तो जातक धनी बनता है. धनेश तुला राशि में और मंगल उच्च का स्थित हो व्यक्ति करोड़पति बनता है.
11.    कुंभ लग्न के लिए धन योग
कर्म भाव अर्थात दसवें भाव में चंद्र और शनि की युति व्यक्ति को धनवान बनाती है. यदि शनि लग्न में हो और मंगल छठे भाव में हो तो जातक ?श्वर्य से युक्त होता है.
12.    मीन लग्न के लिए धन योग
कुण्डली के दूसरे भाव में चंद्रमा और पांचवें भाव में मंगल हो तो अच्छे धन लाभ का योग होता है. यदि गुरु छठे भाव में शुक्र आठवें भाव में शनि बारहवें भाव और चंद्रमा एकादशेश हो तो जातक कुबेर के समान धन पाता है।

कुछ अन्य धन योग

  • यह तो बात हुई लग्न द्वारा धन लाभ के योगों की अब हम कुछ अन्य धन योगों के विषय में चर्चा करेंगे जो इस प्रकार बनते हैं।
  • मेष या कर्क राशि में स्थित बुध व्यक्ति को धनवान बनाता है, जब गुरु नवे और ग्यारहवें और सूर्य पांचवे भाव में बैठा हो तब व्यक्ति धनवान होता है।
  • जब चंद्रमा और गुरु या चंद्रमा और शुक्र पांचवे भाव में बैठ जाए तो व्यक्ति को अमीर बनाता है।
  • सूर्य का छठे और ग्यारहवें भाव में होना व्यक्ति को अपार धन दिलाता है।
  • यदि सातवें भाव में मंगल या शनि बैठे हों और ग्यारहवें भाव में शनि या मंगल या राहू बैठा हो तो व्यक्ति धनवान बनता है।
  • मंगल चौथे भाव, सूर्य पांचवे भाव में और गुरु ग्यारहवे या पांचवे भाव में होने पर व्यक्ति को पैतृक संपत्ति से लाभ मिलता है।


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संतान का विवाह कब होगा


आज जिस प्रकार समय बदल रहा है, स्त्रीयां-पुरुषों से कंधो से कंधा मिलाकर साथ चल रही है। एकांकी परिवार होने से घर चलाने के लिए पुरुष के साथ-साथ स्त्री भी सहयोग करने लगी हैं। माता-पिता अपने लडके के लिए पढ़ी-लिखी कन्या बहु के रुप में चाहते हैं, जो उनके पुत्र के साथ-साथ परिवार को भी संभालकर चले। वही कन्या के पिता अपनी पुत्री के लिए योग्य वर की कामना करते हैं।

वर्तमान में जिस प्रकार के आकडे लडके-लडकी के उपलब्ध हुए हैं, असके आधार पर यह हम समझ सकते है की लडकी कि अपेक्षा, लडके के लिए योग्य बहु मिलना कितना मुश्किल होता जा रहा हैं। प्रत्येक माता पिता को अपनी संतान के विवाह कि चिंता सताने लगती हैं, जैसे-जैसे संतान की उम्र बढती जाती है वैसे - वैसे अभिभावक की चिंता। अपने मन में उठने वाले इस प्रश्न के उत्तर के लिए व्यक्ति ज्योषिी के पास जाते हैं।

वैदिक ज्योतिष ही इस प्रश्न का सटीक उत्तर देने में सक्षम हैं कि व्यक्ति का विवाह कब, कहॉ होगा, जिवनसाथी का परिवार कैसा होगा आदि।

विवाह समय निर्धारण के लिये सबसे पहले कुण्डली में विवाह के योग देखे जाते है. इसके लिये सप्तम भाव, सप्तमेश व शुक्र से संबन्ध बनाने वाले ग्रहों का विश्लेषण किया जाता है. जन्म कुण्डली में जो भी ग्रह अशुभ या पापी ग्रह होकर इन ग्रहों से दृ्ष्टि, युति या स्थिति के प्रभाव से इन ग्रहों से संबन्ध बना रहा होता है. वह ग्रह विवाह में विलम्ब का कारण बन रहा होता है.

इसलिये सप्तम भाव, सप्तमेश व शुक्र पर शुभ ग्रहों का प्रभाव जितना अधिक हो, उतना ही शुभ रहता है . तथा अशुभ ग्रहों का प्रभाव न होना भी विवाह का समय पर होने के लिये सही रहता है. क्योकि अशुभ/ पापी ग्रह जब भी इन तीनों को या इन तीनों में से किसी एक को प्रभावित करते है. विवाह की अवधि में देरी होती ही है.

जन्म कुण्डली में जब योगों के आधार पर विवाह की आयु निर्धारित हो जाये तो, उसके बाद विवाह के कारक ग्रह शुक्र  व विवाह के मुख्य भाव व सहायक भावों की दशा- अन्तर्दशा में विवाह होने की संभावनाएं बनती है. आईये देखे की दशाएं विवाह के समय निर्धारण में किस प्रकार सहयोग करती है:-

हाथों में शनि पर्वत की माया


शनि पर्वत

आकाश गंगा में भ्रमण कर रहे शनि ग्रह के चारो तरफ एक चक्र  सा  दिखाई देता है, जो काफी सुन्दर प्रतीत होता है। ये चक्र वास्तविकता में धूल के कण है, जो शनि के तीव्र गती से धुमने से उनके साथ-साथ धुमते रहते है। यह बल्यधारी ग्रह अपने नीलाभवर्ण और चतुर्दिक मुद्रिका-कार आभायुक्त वलय के कारण बहुत ही सुन्दर प्रतीत होता है। जन्मपत्रिका की हम बात करें तो,ये तो हम सभी जानते है की चन्द्र राशि से जब शनिदेव भ्रमाण करते हुए ये बारहवें भाव में आते है तो व्यक्ति को साढेसाती लगती है जो साढेसात वर्ष की होती है, क्योकि शनिदेव प्रत्येक राशि में ढाई वर्ष रहते है। यदि पत्रिका में चन्द्र राशि से चतुर्थ या अष्ठम भाव में गोचर वश आते है तो ढईया लगती है। जन्मपत्रिका में शनिदेव अशुभ हो तो साढेसाती, ढईया या अपनी उन्नीस वर्षों की महादशा में अत्यधिक पीडा देता है कई बार तो व्यक्ति को राजा से रंक भी बना देते है। परंतु शुभ स्थिति में ये व्यक्ति को उतना ही वैभव और संपन्नता देते है।
जन्मपत्रिका की भांति मानव हथेलियों पर भी शनि ग्रह की स्थिति होती है। शनि-पर्वत की स्थिति, आकार उभार और समीपवर्ती पर्वतों की संगति के भेद से शुभाशुभ एवं अशुभ दोनों प्रकार के फलों को बताया जा सकता है।

हस्तरेखा में 'शनि रेखा का - शुभ व अशुभ प्रभाव

मध्यमा अंगुली के नीचे शनि पर्वत का स्थान है। यह पर्वत बहुत भाग्यशाली मनुष्यों के हाथों में ही विकसित अवस्था में देखा गया है। शनि की शक्ति का अनुमान मध्यमा की लम्बाई और गठन में देखकर ही लगाया जा सकता है,यदि वह लम्बीं और सीधी है तथा गुरु और शुक्र ( Ring Finger ) की अंगुलियां उसकी ओर झुक रही हैं तो मनुष्य के स्वभाव और चरित्र में शनिग्रहों के गुणों यथा - स्वाधीनता, बुद्धिमता, अध्ययनशीलता, गंभीरता, सहनशीलता, विनम्रता और अनुसंधान तथा इसके साथ अंतर्मुखी, अकेलापन।
शनि के दुष्प्रभाव की सूची भी छोटी नहीं है यथा - अज्ञान, ईर्ष्या, अंधविश्वास आदि इसमें सम्मिलित हैं। अत: शनि ग्रह से प्रभावित मनुष्य के शारीरिक गठन को बहुत आसानी से पहचाना जा सकता है। ऐसे मनुष्य कद में असामान्य रूप में लम्बे होते हैं,उनका शरीर सुसंगठित लेकिन सिर पर बाल कम होते हैं। लम्बे चेहरे पर अविश्वास और संदेह से भरी उनकी गहरी और छोटी आंखें हमेशा उदास रहती हैं। यद्यपि उत्तोजना, क्रोध और घृणा को वह छिपा नहीं पाते।
इस पर्वत के अभाव होने से मनुष्य अपने जीवन में अधिक सफलता या सम्मान नहीं प्राप्त कर पाता। मध्यमा अंगुली भाग्य की देवी है। भाग्यरेखा की समाप्ति प्राय: इसी अंगुली की मूल में होती है। पूर्ण विकसित शनि पर्वत वाला मनुष्य प्रबल भाग्यवान होता है। ऐसे मनुष्य जीवन में अपने प्रयत्नों से बहुत अधिक उन्नति प्राप्त करते हैं। शुभ शनि पर्वत प्रधान मनुष्य, इंजीनियर, वैज्ञानिक, जादूगर, साहित्यकार, ज्योतिषी, कृषक अथवा रसायन शास्त्री होते हैं। शुभ शनि पर्वत वाले स्त्री-पुरुष प्राय: अपने माता-पिता के एकलौता संतान होते हैं तथा उनके जीवन में प्रेम का सर्वोपरि महत्व होता है। बूढापे तक प्रेम में उनकी रुचि बनी रहती है, किंतु इससे अधिक आनंद उन्हें प्रेम का नाटक रचने में आता है। उनका यह नाटक छोटी आयु से ही प्रारंभ हो जाता है। वे स्वभाव से संतोषी और कंजूस होते हैं। कला क्षेत्रों में इनकी रुचि संगीत में विशेष होती है। यदि वह लेखक हैं तो धार्मिक रहस्यवाद उनके लेखन का विषय होता है।

अविकसित शनि पर्वत होने पर मनुष्य एकांत प्रिय अपने कार्यों अथवा लक्ष्य में इतना तनमय हो जाते हैं कि घर-गृहस्थी की चिंता नहीं करते ऐसा मनुष्य चिड-चिडे और शंकालु स्वभाव के हो जाते हैं,तथा उनके शरीर में रक्त वितरण कमजोर होता है। उनके हाथ-पैर ठंडे होते हैं,और उनके दांत काफी कमजोर हुआ करते हैं। दुघर्टनाओं में अधिकतर उनके पैरों और नीचे के अंगों में चोट लगती है। वे अधिकतर निर्बल स्वास्थ्य के होते हैं। यदि हृदय रेखा भी जंजीरा कार हो तो मनुष्य की वाहन दुर्घटना में मृत्यु भी हो जाती है।

शनि के क्षेत्र पर भाग्य रेखा कही जाने वाली शनि रेखा समाप्त होती है। इस पर शनिवलय भी पायी जाती है और शुक्रवलय इस पर्वत को घेरती हुई निकलती है। इसके अतिरिक्त हृदय रेखा इसकी निचली सीमा को छूती हैं।  इन महत्वपूर्ण रेखाओं के अतिरिक्त इस पर्वत पर एक रेखा जहां सौभाग्य सूचक है। यदि रेखायें गुरु की पर्वत की ओर जा रही हों तो मनुष्य को सार्वजनिक मान-सम्मान प्राप्त होता है। इस पर्वत पर बिन्दु जहां दुर्घटना सूचक चिन्ह है वही क्रांस मनुष्य को संतति उत्पादन की क्षमता को विहीन करता है। नक्षत्र की उपस्थिति उसे हत्या या आत्महत्या की ओर प्रेरित कर सकती है। वृत का होना इस पर्वत पर शुभ होता है और वर्ग का चिन्ह होना अत्यधिक शुभ लक्षण है। ये घटनाओं और शत्रुओं से बचाव के लिए सुरक्षा सूचक है, जबकि जाल होना अत्यधिक दुर्भाग्य का लक्षण है।

यदि शनि पर्वत अत्यधिक विकसित होता है तो मनुष्य 22 या 45 वर्षों की उम्रों में निश्चित अत्महत्या कर लेता है। डाकू, ठग, अपराधी मनुष्यों के हाथों में यह पर्वत बहुत विकसित पाया जाता है जो साधारणत: पीलापन लिये होता है। उनकी हथेलियां तथा चमडी भी पीली होती है और स्वभाव म चिडचिडापन झलकता रहता हैं। यह पर्वत अनुकूल स्थिति में सुरक्षा, संपत्ति, प्रभाव, बल पद-प्रतिष्ठा और व्यवसाय प्रदान करता है, परंतु विपरीत गति होने पर इन समस्त सुख साधनों को नष्ट करके घोर संत्रास्तदायक रूप धारण कर लेता है। यदि इस पर्वत पर त्रिकोण जैसी आकृति हो तो मनुष्य गुप्तविधाओं में रुचि, विज्ञान, अनुसंधान, ज्योतिष, तंत्र-मंत्र सम्मोहन आदि में गहन रुचि रखता है और इस विषय का ज्ञाता होता है। इस पर्वत पर मंदिर का चिन्ह भी हो ते मनुष्य प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति के रूप में प्रकट होते हैं और यह चिन्ह राजयोग कारक माना जाता है। यह चिन्ह जिस किसी की हथेलियों के पर्वत पर उत्पन्न होते हैं, वह किसी भी उम्रों में ही वह मनुष्य लाखों-करोडों के स्वामी होते हैं। यदि इस पर्वत पर त्रिशूल जैसी आकृतियां हो तो वह मनुष्य एका-एक सन्यासी बन जाते हैं। यह वैराग्य सूचक चिन्ह है। इसके अलावा शनि का प्रभाव कभी शुरुआत काल में भाग्यवान बनाता है तो कभी जब शनि का प्रभाव समाप्त होता है तब। शनि की दशा शांति करने हित शनिवार को पीपल के नीचे दीपक जलाना चाहिए व हनुमान जी की पूजा-उपासना करना चाहिए।

कार्य न होने पर ये करें



कार्य की सिद्धि के लिए

अगर आप किसी कार्य की सिद्धि के लिए जाते समय घर से निकलने से पूर्व ही अपने हाथ में रोटी ले लें। मार्ग में जहां भी कौए दिखलाई दें, वहां उस रोटी के टुकड़े कर के डाल दें और आगे बढ़ जाएं। इससे सफलता प्राप्ती के योग बनते है।

स्वयं का मकान नही बन पा रहा हो

लाख प्रयत्न करने पर भी स्वयं का मकान नही बन पा रहा हो, तो आप इस टोटके को अवश्य अपनाएं।  प्रत्येक शुक्रवार को नियम से किसी भूखे को भोजन कराएं और रविवार के दिन गाय को गुड़ खिलाएं। ऐसा नियमित प्रति दिन करने से अपनी अचल सम्पति बनेगी या पैतृक सम्पति प्राप्त होगी। अगर सम्भव हो तो प्रात:काल स्नान-ध्यान के पश्चात् निम्न मंत्र का जाप करें।
 “ॐ पद्मावती पद्म कुशी वज्रवज्रांपुशी प्रतिब भवंति भवंति।।´´
यह मंत्र जाप आपको सफलता अवश्य दिलायेगा। 

सुख शांति और संतुष्टि की प्राप्ति होगी

  • रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र हो, तब गूलर के वृक्ष की जड़ प्राप्त कर के घर लाएं। इसे धूप, दीप करके धन स्थान पर रख दें। यदि इसे धारण करना चाहें तो स्वर्ण ताबीज में भर कर धारण कर लें।
  • जब तक यह ताबीज आपके पास रहेगी, तब तक कोई कमी नहीं आयेगी। घर में संतान सुख उत्तम रहेगा। यश की प्राप्ति होती रहेगी। धन संपदा भरपूर होंगे। सुख शांति और संतुष्टि की प्राप्ति होगी।


स्त्री की पत्रिका में सोभाग्य है - गुरु


जन्मपत्रिका में गुरु  स्त्रियो का सौभाग्यवर्द्धक तथा संतानकारक ग्रह है। स्त्रियों की पत्रिका में गुरु 7वें तथा 8वें भाव को अत्यधिक प्रभावित करता है। मकर-कुंभ राशि में स्थित अकेले गुरु दाम्पत्य सुख में कमी लाते है। जलतत्व या कन्या राशि के गुरु यदि पत्रिका के सप्तम भाव मे हो तो दाम्पत्य संबंध मधुर नहीं रहते।

सप्तम भाव में शुभ प्रभाव युक्त गुरु यदि  मीन या धनु राशि के हो तो विवाह विच्छेद की स्थिति बनाता है। गुरु शनि से प्रभावित होने पर विवाह में विलंब कराता है। राहु के साथ होने पर प्रेम विवाह की संभावना बनती है। स्त्रियों की पत्रिका में अष्टम भाव में बलवान गुरु विवाहोपरांत भाग्योदय के साथ सुखी वैवाहिक जीवन के योग बनाता है। आठवें भाव में वृश्चिक या कुंभ का गुरु ससुराल पक्ष से मतभेद पैदा कराता है।
  1. गुरु यदि वृषभ-मिथुन राशि और कन्या लग्न में निर्बल-नीच-अस्त का हो तो वैवाहिक जीवन कष्टपुर्ण होता है।
  2. प्रथम,पंचम, नवम या एकादश भाव में यदि गुरु बलवान हो तो जल्दी विवाह के योग बनाता है, परंतु वक्री, नीच, अस्त, अशुभ, कमजोर होने पर विलंब से विवाह के योग बनते हैं।
  3. यदि पत्रिका के सप्तम भाव कर्क या सिंह के गुरु हो तो भी प्रेम सम्बन्धों व वैवाहिक जीवन सुखपुर्ण नही चलता है।
  4. मिथुन या कन्या राशि में स्थित होकर गुरु यदि लग्न या सप्तम में हो तो वैवाहिक जीवन सुखपुर्ण होता है।
  5. तुला के गुरु यदि सप्तम भाव में हो तो विवाह में विलंब से होता है।
  6. जन्मपत्रिका के लग्न में वृश्चिक, धनु, या मीन राशि के गुरु हो तो वैवाहिक जीवन मधुर रहता हैै।
  7. मीन राशि का गुरु सप्तम में होने पर वैवाहिक जीवन कष्टप्रद रहता है।
सप्तम भाव में स्थित अकेले गुरु अच्छे नही कहे गए हैं। खासकर अकेले।

पितृ दोष


पितृदोष - उपाय
कुन्डली का नवां घर धर्म का घर कहा जाता है,यह पिता का घर भी होता है,अगर किसी प्रकार से नवां घर खराब ग्रहों से ग्रसित होता है तो सूचित करता है कि पूर्वजों की इच्छायें अधूरी रह गयीं थी,जो प्राकृतिक रूप से खराब ग्रह होते है वे सूर्य मंगल शनि कहे जाते है और कुछ लगनों में अपना काम करते हैं,लेकिन राहु और केतु सभी लगनों में अपना दुष्प्रभाव देते हैं,मैने देखा है कि नवां भाव,नवें भाव का मालिक ग्रह,नवां भाव चन्द्र राशि से और चन्द्र राशि से नवें भाव का मालिक अगर राहु या केतु से ग्रसित है तो यह पितृ दोष कहा जाता है।

इस प्रकार का जातक हमेशा किसी न किसी प्रकार की टेंसन में रहता है,उसकी शिक्षा पूरी नही हो पाती है,वह जीविका के लिये तरसता रहता है,वह किसी न किसी प्रकार से दिमागी या शारीरिक रूप से अपंग होता है,अगर किसी भी तरह से नवां भाव या नवें भाव का मालिक राहु या केतु से ग्रसित है तो यह सौ प्रतिशत पितृदोष के कारणों में आजाता है। मै यहां पर पितृदोष को दूर करने का एक बढिया उपाय बता रहा हूँ,यह एक बार की ही पूजा है,और यह पूजा किसी भी प्रकार के पितृदोष को दूर करती है। सोमवती अमावस्या को (जिस अमावस्या को सोमवार हो) पास के पीपल के पेड के पास जाइये,उस पीपल के पेड को एक जनेऊ दीजिये और एक जनेऊ भगवान विष्णु के नाम का उसी पीपल को दीजिये,पीपल के पेड की और भगवान विष्णु की प्रार्थना कीजिये,और एक सौ आठ परिक्रमा उस पीपल के पेड की दीजिये,हर परिक्रमा के बाद एक मिठाई जो भी आपके स्वच्छ रूप से हो पीपल को अर्पित कीजिये।

परिक्रमा करते वक्त :ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करते जाइये। परिक्रमा पूरी करने के बाद फ़िर से पीपल के पेड और भगवान विष्णु के लिये प्रार्थना कीजिये और जो भी जाने अन्जाने में अपराध हुये है उनके लिये क्षमा मांगिये। सोमवती अमावस्या की पूजा से बहुत जल्दी ही उत्तम फ़लों की प्राप्ति होने लगती है। एक और उपाय है कौओं और मछलियों को चावल और घी मिलाकर बनाये गये लड्डू हर शनिवार को दीजिये। पितर दोष किसी भी प्रकार की सिद्धि को नहीं आने देता है। सफ़लता कोशों दूर रहती है और व्यक्ति केवल भटकाव की तरफ़ ही जाता रहता है।
लेकिन अगर कोई व्यक्ति माता काली का उपासक है तो किसी भी प्रकार का दोष उसकी जिन्दगी से दूर रहता है। लेकिन पितर जो कि व्यक्ति की अनदेखी के कारण या अधिक आधुनिकता के प्रभाव के कारण पिशाच योनि मे चले जाते है,वे देखी रहते है,उनके दुखी रहने का कारण मुख्य यह माना जाता है कि उनके ही खून के होनहार उन्हे भूल गये है और उनकी उनके ही खून के द्वारा मान्यता नहीं दी जाती है। पितर दोष हर व्यक्ति को परेशान कर सकता है इसलिये निवारण बहुत जरूरी है।

आगे आने वाली सोमवती अमावस्यायें :-



  1. 29th August 2011
  2. 23rd Jan. 2012
  3. 15th October 2012
  4. 11th March 2013.
  5. 8th July 2013
  6. 2nd December 2013
  7. 25th August 2014
  8. 22nd December 2014