Thursday 25 July 2013

शरीर पर तिल के प्रभाव

सामुद्रिक शास्त्र ज्योतिष विद्या की एक अहम कडी है जिसमें  मानव शरीर पर बने तिल-मस्सों से उसके स्वभाव और भविष्य के बारें में सबसे सटिक भविष्यवाणी की जा सकती हैं। सामुद्रिक शास्त्र में शरीर के हर अंग पर बने तिलों का अलग-अलग प्रभाव होता है, जैसे -
गले पर तिल होना जातक के सुरीला होने की निशानी होती है।
वहीं स्त्रियों की छाती पर तिल का होने उनके पुत्रवान होने की भविष्यवाणी करता है आदि।
इसी तरह शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर बने अलग-अलग वर्ण और आकार के तिलों का अपना फलादेश होता है। इन तिलों के बारें में जानकर आप यह निर्णय ले सकते हैं कि सामने वाला इंसान कैसा है और कैसा नहीं? पुरुषों और महिलाओं के शरीर पर तिल का फलादेश कई जगह अलग-अलग होता है।

तिल का अंगानुसार प्रभाव -
  1. माथेपरतिल हो तो जातक बलवान होता है।
  2. जिस व्यक्ति के ललाट पर दायीं तरफ तिल हो, वह प्रतिभा का धनी होता है, और बायीं तरफ होनेपर व्यक्ति फिजूलखर्च करने वाला होता है।
  3. जिस के ललाट के मध्य में तिल हो, वह व्यक्ति अच्छा प्रेमी  सिद्ध होता हैं।
  4. ठुड्डी परतिल हो तो वह स्त्री से प्रेम नही करता, किंतु वह जिवन में सफल व संतुष्ट रहता है।
  5. दोनो भौहो के बीच तिल हो तो यात्रा बहुत करनी पड़ती है।
  6. दायीं भौ पर तिल वाले व्यक्ति का वैवाहिक जीवन सफल रहता है।
  7. दाहिनी आंख पर तिल हो तो स्त्री प्रेमी होता है और बायींआंख परतिल हो तो स्त्री से विवाद या कलह होती है।
  8. आंख पर तिल व्यक्ति को कंजूस बनाता है।
  9. जिसके आंख के अंदर तिल हो, वह व्यक्ति नरमदिल अर्थात भावुक होता है।
  10. पलको पर तिल व्यक्ति को संवेदनशील और एकांतप्रिय बनाता है।
  11. दाएं गाल पर तिल हो तो जातक धनी होता है, और वैवाहिक जीवन सफल रहता है।
  12. बाएं गाल पर तिल हो तो जातक का खर्चीला होता है तथा उसका जीवन संघर्षपूर्ण रहता हैं।
  13. होठ पर तिल हो तो विषय-वासना में रत रहता हैं। या अधिक भेगी होता हैं।
  14. जिसके मुंह के पास तिल होता है, वह जीवन में खुब धन कमाता हैं।
  15. जिस व्यक्ति के नाक पर तिल होता हैं व अपने जीवन का लक्ष्य निर्धारीत करता है और उसे प्राप्त भी करता हैं।
  16. कान पर तिल हो तो जातक अल्पायु होता है, परन्तु वह धीर-गंभीर और विचारो वाला होता है।
  17. गर्दन पर तिल वाला व्यक्ति अच्छा मित्र साबीत होता हैं साथ ही उसे जीवन में सभी चीजे आसानी से प्राप्त हो जाती हैं।
  18. दाएं कंधे पर तिल वाले व्यक्ति दृढ संकल्पी होते हैं।
  19. दाहिनी भुजा पर तिल मान-सम्मान दिलवाता हैं वही बायीं भुजा पर तिल व्यक्ति को झगड़ालू बनाता है।
  20. नाक पर तिल हो तो यात्रा बहुत करनी पड़ती हों जो लाभकारी भी होती हैं।
  21. जिसके बाएं कंधे पर तिल होता है, वह व्यक्ति क्रोधी स्वभाव का होता है।
  22. कंधे और कोहनी के मध्य तिल व्यक्ति को उत्सुक प्रवृती का बनाता है।
  23. कोहनी पर तिल होना विद्वान होने का संकेत है।
  24. दाहिनी छाती पर तिल स्त्री से प्यार करने वाला तथा बायीं छाती पर तिल स्त्री से होने वाले मतभेद को बतलाता है।
  25. कमर पर तिल हो तो जीवन परेशानियो भरा होता हैं। कमर पर दायीं ओर तिल होना यह दर्शाता है कि व्यक्ति अपनी बात पर अटल रहने वाला और सच्चाई पसंद करने वाला है।
  26. दोनो छाती के मध्य में तिल हो तो जीवन सुख से व्यतित होता हैं।
  27. पेट पर तिल हो तो जातक अच्छा भोजन में रुची रखता हैं।
  28. पीठ पर तिल व्यक्ति को यात्रा करवाता है।
  29. नाभि पर तिल मनमौजी प्रवृती देता है।
  30. टखनें पर तिल इस बात का सूचक है कि व्यक्ति खुले विचारो वाला है।
  31. कूल्हे पर तिल व्यक्ति को शारीरिक व मानसिक दोनो प्ररिश्रम देता हैं।
  32. दायीं हथेली पर तिल हो तो व्यक्ति शक्तिशाली बनाता है।
  33. बायीं हथेली पर तिल हो तो व्यक्ति बहुत खर्चीला होता है।
  34. दाए हाथ के ऊपर तिल व्यक्ति को धनी बनाता है, और बाएं हाथ के ऊपर तिल कंजूस प्रवृती देता है।
  35. जिस व्यक्ति के कोहनी और पोंहचे के मध्य कही तिल होता है, वह रोमांटिक प्रवृती का होता है।
  36. जिसके घुटने पर तिल हो, वह व्यक्ति सफल वैवाहिक जीवन जीता है।
  37. दाएं पैर में तिल व्यक्ति बुद्धीमान और बाएं पैर पर  तिल व्यक्ति को खर्चीला बनाता हैं।
  38. पांव पर तिल लापरवाही देता हैं।
  39. जोडो पर तिल होना शारिरीक दुर्बलता देता हैं।
  40. तिल यदि बड़ा हो, तो शुभ होने के साथ-साथ अच्छे शकुन को बढ़ाता है।
  41. यदि तिल पर बाल हो, तो वो शुभ नही माना जाता।
  42. तिल गहरे रंग का हो, तो माना जाता है कि बडी बाधाएं सामने आएंगी और जिस अंग का जो फल सामुद्रिक शास्त्र में जो वर्णित हैं व अत्यधिक प्राप्त होता हैं।

Sunday 14 July 2013

Guru Poornima

गुरुपूर्णिमा ही व्यासपूर्णिमा  -  ( 22 जुलाई, 2013 )

आषाढ मास की पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा कहते हैं। इस दिन गुरु पूजा का विद्यान हैं। वैदिक काल में समस्त परिव्राजक साधुगण एक ही स्थान पर रुककर चार माह तक ज्ञान की गंगा बहाते थे। इन चार माह में सर्दी व गर्मी एक समान रहती है जो कि अध्ययन व अध्यापन के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं।

वैसे ये चार माह वो ही हैं जब प्रभु शयनावस्था में होते है। इन चार माह को चतुर्मास भी कहते हैं। प्रभु के शयनावस्था में होने से अंधकार न फैले, इसके लिए संत इन महिनों में अपनी ज्ञान गंगा जनसाधारण में फैलाते रहते हैं।  जिस प्रकार सूर्य से तपती भूमि को वर्षा की शीतलता की आवश्यकता होती है, अन्न (फसल) पैदा करने के लिए। इसी प्रकार गुरु चरण में उपस्थित  साधको को ज्ञान, शांति, भक्ति और योग प्राप्त करने की शक्ति प्राप्त होती हैं।

गु का अर्थ अंधकार से व रु का अर्थ उसका निरोधक से हैं, अर्थात अंधकार को हटाकर जो प्रकाश की और ले गुरु कहते हैं।
जाए उसे

इसी दिन महाभारत के रचयिता वेदव्यास ही का भी जन्म हुआ था, जिन्होनें जनकल्याण हेतु चारों वेदों का संकलन कर 18 पुराण व उपपुराणो की रचना की। चार वेदो के अतिरिक्त पंचम वेद महाभारत की रचना वेदव्याय जी ने इसी दिन संपन्न की थी, तब से इन्हें आदिगुरु की उपाधि प्राप्त हुई थी। इनके सम्मान में गुरुपूर्णिमा को व्यासपूर्णिमा के नाम से भी जाना जाने लगा।

वैदिक काल में जब गुरु के आश्रम में विद्यार्थी नि:शुल्क शिक्षा ग्रहण करतें थे, तो इसी दिन विद्यार्थी अपने सामथ्र्यानुसार अपने गुरु को दक्षिणा देकर सम्मानित करतें थे।

आज भी इसका महत्व बरकरार हैं। विद्यालयों, संगीत, कलावैदिक ज्ञान प्राप्त कर रहें विद्यार्थी इस दिन अपने गुरुजनों का सम्मान करतें हैं।

प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में गुरु की आवश्यक्ता पडती हैं, जो उसें पापमार्ग से निकालकर सद्मार्ग पर ले जाए ताकि वह जीवन के उच्चतम शिखर को प्राप्त कर सकें।

इसकी पुष्टि इन दोहो से होती हैं।

गुरु गोविंद दोऊ खडे, किसको लागुं पाय ।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दिया बताय ॥

राम कृष्ण सबसे बडा, उन्हूँ तो गुरु कीन्ह।
तीन लोक के व धनी, गुरु आज्ञा आधीन।।