Monday 24 February 2014

गौमुखी व सिंहमुखी भूखण्ड की भ्रांतियाँ

एक बार एक सज्जन से कुछ लोगो को मेंने कहते हुए सुना की निवास हेतु गोमुखी व व्यापार हेतु सिंहमुखी भूखण्ड शुभ होते हैं। उन दिनो में वास्तु कि प्रेक्टिस किया करता था। कोतुहलवश मेने उन लोगो से इसका कारण पुछा तो उन्होंने बताया कि गोमुखी भुखण्ड का आगें का भाग पीछे कि तुलना मे छोटा होता हैं। चित्र ए के अनुसार फलत: घर खर्च मे कमी आती हैं साथ ही यहाँ निवास करने वाला व्यक्ति मितव्ययी नही होता हैं। सिंहमुखी भुखण्ड में आगें का भाग पीछे की तुलना में बडा होता हैं। चित्र बी के अनुसार फलत: व्यापार करने पर लोगो की आवक बनी रहती हैं। लाभ बढता हैं।

                         
यह बात मेंरी समझ में नही आई कि जब ओर तो गोमुखी भुखण्ड में रहने पर खर्चे घटते हैं वही इसके विपरीत सिंहमुखी भुखण्ड में निवास करने वाले व्यक्ति को तो मितव्ययी होना चाहिये। परिणाम स्वरूप लाभ कि जगह हानि होनी चाहिए।

हम सभी जानते हैं कि वास्तुपूरुष कि कल्पना वर्गाकार रूप में कि जाती हैं। साथ ही सम्पूर्ण भूखण्ड में इनकी सत्ता व्याप्त होती हैं। यही कारण भी हैं कि भूखण्डो के आकार में शुभता की श्रेणी में पहला स्थान वर्गाकार भुखण्ड का ही हैं (वर्गाकार  भुखण्ड शुभ होते हैं या नही आज के परिपेक्ष में इसकी चर्चा हम अगले किसी भाग में करेंगें)

                            
चित्र ए1 अनुसार गोमुखी भुखण्ड या चित्र बी1 के अनुसार सिहंमुखी भूखण्ड में हम जब वास्तुपूरुष की कल्पना करेगें तो किन्ही दो कोणो का कटान व दो कोणो का विस्तार देखने को मिलेगा। भूखण्ड के किसी भी कोण का विस्तार व कटान हानि व कष्टो को बढाने वाला होता हैं। केवल ईशान कोण का विस्तार व भी अपेक्षित मात्रा में लाभ को बढाने वाला होता हैं।
                           
मान लिजिए कि कोई उत्तरमुखी गोमुखी भूखण्ड हैं। इस स्थिती में चित्र ए1 के अनुसार भूखण्ड का वायव्य कोण व ईशान कोण कट जाऐगें व साथ ही नैऋ त्य कोण व अग्रिकोण बढ जाऐगें। 

ईशान कोण में वास्तुपुरुष का सिर होता हैं। यदि भुखण्ड में वास्तुपुरुष का सिर ही नही होगा तों वहाँ निवास करने वाले व्यक्ति कभी भी सफलता अर्जित नही  कर पाऐगें। कभी किसी भी बात पर एक मत नही होगें। पुत्र पिता से व पत्नी अपने पति की बातो का विरोध करते हुए मिलेगें। गृहस्वामी हमेशा इस बात से पीडित रहेगा की कोइ्र्र उसकी बात नही मानते हैं। अनिर्णय, प्रसिद्धी का नाश, गृहस्वामी की संतान का अलग से घर बसा लेना की प्रवृति धीरे-धीरे घर को पतन की ओर ले जाती हैं। अग्रिकोण का विस्तार भी हानि देता हैं। अल्पपुत्रता, डिहाईड्रेशन, किडनी फेल व औद्योगिक पतन आदि। बढी हुई अग्रि की तीव्रता वहा निवास करने वाले व्यक्ति के स्वभाव में देखने को मिलती हैं। जो एक दिन पतन का कारण बनती हैं।

ठीक दूसरी तरफ वायव्यकोण का कटान हो रहा हैं। वायव्यकोण के देवता राहु  व वायव्यकोण से ठीक पश्चिम दिशा मध्य के बीच का चंद्रमा का स्थान हैं। साथ ही वायव्यकोण में रोग नाम के देवता का स्थान हैं। फलत: पागलपन, डिप्रेशन, दूषित विचारधारा, वायुजनित रोग, संक्रमण आदि परिणाम धीरे-धीरे गृहस्वामी या वहाँ निवास कर रहें लोगो को सताने लगती हैं।

नैऋत्यकोण का विस्तार भी हो रहा हैं इस भूखण्ड में हो रहा हैं। नैऋत्यकोण का विस्तार यदि पश्चिम दिशा से हो रहो हो तो कानूनी विवाद, दुर्घटनाएं, संतान का किसी भी क्षेत्र में सफल न होना, संस्था में वित्तिय घाटा आदि परिणाम प्राप्त होतें हैं। कोई भी संस्था यदि ऐसे भूखण्ड पर चल सफलता पूर्वक चल रही हो तो भी यह समझना चाहिये कि अगले कुछ वर्षो में उस संस्था का पतन निश्चित हैं।

अत: सिंहमुखी व गोमुखी दोनो ही प्रकार के भूखण्ड वास्तु के दृष्टिकोण से शुभ नही होतें हैं।

Sunday 9 February 2014

विभिन्न राशियों पर कुंभ के सूर्य का प्रभाव

13 फरवरी, 2014

ज्योतिष जगत में सूर्य को आत्मा, राजा, सत्ताधारी, सरकार, ख्याति, शोर्य, प्रतिष्ठा आदि विषयों से संबंधित ग्रह माना जाता हैं। किसी व्यक्ति विशेष की पत्रिका में जब अन्य ग्रहों के साथ-साथ सूर्य उच्च, मित्र या स्वराशिगत हो तो और षडबल में भी बलवान हो तो व्यक्ति को सरकारी सेवा का अवसर प्राप्त होने का अवसर प्राप्त होता हैं यदि ऐसा नही तो स्वयं का व्यवसाय अवस्य करता हुआ मिलेगा। यदि प्राइवेट  नौकरी करनी भी पडे तो ज्यादा समय तक नही करेगा। यदि सुर्य नीच राशि में स्थित हो तो भी व्यक्ति छोटे या बडे स्तर की संस्था में प्रबंध का कार्य करता हुआ मिलेगा। इस मामले में  मामले में मेष व तुला लग्न वालो को वैवाहिक सुख की प्राप्ति नही होती हैं यदि हो तो जल्द ही अलग होने की स्थिती बनने लगती हैं।

ऐसे विद्यार्थी जिनके सूर्य बलवान हो वे एक या दो प्रतियोगी परिक्षओ  में ही सफलता हासिल कर सरकारी नौकरी प्राप्त कर लेते हैं। जबकि कमजोर सूर्य वाल निरंतर प्रयास के बाद भी सफलता से वंचित ही रहते हैं। पत्रिका में स्थित सूर्य के परिणाम कब प्राप्त होगें इसकी पुष्टि ग्रहों की महादशा के साथ-साथ गोचर भी अदा करता हैं। सूर्य का राशि परिवर्तन मकर से तुला में 13 फरवरी को प्रात: 2 बजकर 13 मिनट पर हो रहा हैं। 14 मार्च तक सूर्य इसी राशि में स्थित रहेंगे। कुंभ राशि के स्वामी शनि हैं। शनि को ज्योतिष में भृत, दास, सेवक व न्यायधीश के रूप में जाना जाता हैं। अर्थात राजा (सूर्य) सेवक (शनि) के घर जा रहें हैं। सूर्य के गोचर की यह स्थिती  राजनैतिक उथल पुथल का होना दर्शाती हैं। साथ ही 18 फरवरी को बुध भी वक्री होकर शनि की दूसरी राशि मकर में प्रवेश करेंगें। बुध ग्रह वाणी के कारक हैं जो रानेताओं में तरह तरह की टिप्पणियों मे बढोत्तरी करेगें। इस दौरान सत्ता में अविश्वनीय घटनाक्रम देखने को मिलेगा। जिसे मीडिया भुनाता हुआ दिखाई देगा। सत्तारूढ दलो में टकराव के प्रबल योग हैं। 

आइये जाने प्रत्येक राशि पर सूर्य के गोचर का क्या प्रभाव पडेगा।

1. मेष- मेष राशि से सूर्य लाभ भाव में गोचर करेगें। आपकी महत्वपूर्ण महत्वकांक्षाए पूर्णता की और बढती दिखाई देगी। अनुबंधो और समझौतो में उत्तराद्र्ध गोचर से लाभ प्राप्त होगा। अविवाहितो के विवाह संबंधी मामलो में गति आएगी। प्रेम प्रसंगो से संबंधित मामलो में बढोत्तरी हीगी।

2. वृष- अपाकी राशि से सूर्य का गोचर दशम भाव से हो रहा हैं। पत्रिका का दशम भाव आजिवीका से संबंधित होता हैं। अत: व्यापार से लाभ की मात्रा बढेगी। यदि आप सेवारत हैं तो पद-प्रतिष्ठा बढ सकती हैं। अधिकरी वर्ग आपके किये गए कार्यों से खुश रहेगें। अपने व्यवसाय को बढाने या नवीन व्यापार हेतु धन की पूर्ति ऋण के रूप में प्राप्त होगी। किसी पुराने मित्र या रिश्तेदार से मुलाकात हो सकती हैं।

3. मिथुन- सूर्यदेव आपकी राशि से नवम भाव यानी भाग्य भाव से गोचर करेगें। इस गोचर से माता-पिता को स्वास्थय संबंधी समस्या हो सकती हैं। अधिकारी वर्ग से संबंधित लोगो से मेलजोल लाभप्रद रहेगा। किसी धार्मिक स्थल की यात्रा के योग भी बन सकते हैं। अविवाहितो के विवाह संबंधी मामलो में गति आएगी। पूर्वाद्ध की अपेक्षा उत्तराद्र्ध लाभप्रद रहेगा।
4. कर्क- कर्क राशि से सूर्य का गोचर अष्टम भाव में हो रहा हैं। व्यवसाय में अचानक नुकसान या सकस्या शुरू हो सकती हैं। यदि आप नोकरी करते है तो अधिकारी वर्ग आपके कार्यो से नाखुश रहेगें। यदि आपका प्रमोशन इस दौरान होना है तो निराशा होना पड सकता हैं। भूमि-भवन संबंधित मामलो के गति आएगी। अपने व्यवसाय को बढाने या नवीन व्यापार हेतु धन की पूर्ति ऋण के रूप में प्राप्त होगी। आपकी राशि को शनि पहले ही ढैया लगाकर पीडित कर रहें है। किसी नवीन योजना का क्रियांवयन नवम्बर तक टाले अन्यथा हानि उठानी पड सकती हैं।

5. सिंह- सुर्य आपकी राशि से सप्तम भाव से गोचर करेगें। साझेदारी व्यापार में मतभेद हो सकता हैं। आपका विश्वास साझेदार से उठने लगेंगा। जिसके कारण हानि भी हो सकती हैं। जिवनसाभी से भी मतभेद बढ सकता हैं। घरेलू समस्याओं का हल शांतिपूर्वक निकालें। इस माह जन्म लेने वाले शिशुओं में बालिका की अपेक्षा बालको की संख्या अधिक होगी।

6. कन्या- सूर्य का यह गोचर आपके लिए लाभप्रद रहेगा। कोई लम्बा विवाद जो अदालत या अन्यत्र चल रहा हैं  वह अब अपने पक्ष में होता हुआ दिखाई देगा। एक और जहां शनि की साढेसाती आपकी पैरो पर हैं वही सूर्य राशि से षष्ठम भाव में होगें जो शत्रुओ की पराजय का परिचायक हैं। अर्थ लाभ की प्राप्ति हो सकती हैं। वाहन सावधानी से चलाए दुर्घटना हो सकती हैं।

7. तुला- आपकी राशि तुला से सूर्य गोचरवश पंचम भाव में आऐगें। सूर्य का यह गोचर संतान के कष्ट को दर्शाता हैं। यदि आप नौकरी करते है तो कार्यभार तो बढेगा किन्तु पद नही। यदि आप व्यावसाय करते हैं तो हानि हो सकती हैं। यात्रा में कष्ट हो सकता हैं अत: यात्रा से बचे। प्रेम संबंधो के लिए समय अभी अनुकूल नही हैं।

8. वृश्चिक- आपकी राशि से सूर्य चतुर्थ भाव से गोचर करेगें। पत्रिका का चतुर्थ भाव माता, भूमि-भवन, सुख सुविधओ से संबंधित होता हैं। अत: उपरोक्त मामलो से कष्ट प्राप्त हो सकता हैं। माता को स्वास्थ्य संबंधी परेशानी हो सकती हैं। रियलस्टेट में किया गया निवेश हानि दे सकता हैं।

9. धनु- आपकी राशि से सूर्य तृतीय भाव से गोचर करेंगें। तृतीय भाव पराक्रम, Self Confidence  छोटे भाई-बहनों से संबंधित होता हैं। सूर्य के इस गोचर से आप कोई दुस्साहस पूर्ण निर्णय ले सकते हैं जो आगें जाकर हानिकारक हो सकता हैं। भाइयों से सहयोग की आशा करना व्यर्थ हैं। गोचर का उत्तराद्र्ध कार्य के हिसाब से ठीक रहेगा।

10. मकर- सूर्य आपकी राशि मकर से द्वितीय भाव से गोचर करेगें। द्वितीय भाव वाणि, धन, कुटुम्ब से संबंधित होता हैं। सूर्य अग्नितत्व ग्रह हैं जो वायुतत्व राशि मकर में स्थित हैं। आपकी वाणी लागो पर अग्नि के समान प्रहार वाली होगी। अपनी वाणी पर नियंत्रण रखें अन्यथा भारी नुकसान उठाना पड सकता हैं। कार्यस्थल पर आपके द्वारा किये गए कार्यों की प्रशंसा होगी। Real Estate से संबंधित विषयो से लाभ हो सकता हैं।

11. कुंभ- सूर्य का आपकी राशि कुंभ से गोचर मांसिक तनाव को बढावा देने वाला होगा। कार्यस्थल पर कार्यभार तो बढेगा किन्तु पद नही, परिणामस्वरूप मांसिक अवसाद हो सकता हैं। गोचर के उत्तराद्र्ध मे पद भी बढ सकता हैं। अविवाहितो के विवाह संबंधी मामलो में गति आऐगी। वैवाहिक जिवन में अब मधुरता आने लगेंगी।

12. मीन- प्रत्येक भाव से द्वादश भाव उस भाव का नुकसान करता हैं। आपकी राशि मीन से सूर्य द्वादश भाव से गोचर करेगें। स्वास्थ्य संबंधी परेशानी हो सकती हैं। सूर्य का यह गोचर आपके लिए चिंताओ भरा होगा। एक और जहा अर्थ प्रबन्ध की समस्या हो सकती हैं। वही कार्यस्थल पर भी समस्यां उत्पन्न होने लगेगी। यदि आप व्यवसाय करतें हैं तो नवीन आडॅर प्राप्त नही होगें। अधिकारी वर्ग थोडे नाराज से हो चलेगें। कोर्ट कचहरी से संबंधित विषयो में निराशा हाथ लगेंगी। भाग्य भी साथ छोडता हुआ सा महसूस होगा। परन्तु चिंता न करें गोचर का उत्तराद्र्ध लाभप्रद रहेगा। अविवाहितो के संबंध तय होगें।

Thursday 6 February 2014

वास्तु सुधार में लिए जा रहे वास्तु के Products की वास्तविक्ता

श्रीमद् भगवत् गीता में एक श्लोक हैं-
            ऊध्र्वमूलमध: शाखमश्वत्थं प्राहुरत्ययम्।
          छंदासि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्।।
अर्थात:- कहा जाता है कि एक शाश्वत अश्वत्थ वृक्ष हैं जिसकी जडें तो ऊपर है और शाखाँए जीचे की ओर तथा ऊसकी पत्तियाँ वैदिक स्तोत्र हैं। जो इस वृक्ष को जानता हैं, वह वेदो का ज्ञाता हैं।
                        इसी क्रम में जो व्यक्ति वेदो का ज्ञाता हो उसे भूत, भविष्य और वर्तमान सभी का पता होता है। सतयुग, त्रेता, द्वापर आदि युगो में ऋषियो की वाणि में सत्यता तप द्वारा ही आती थी। कलयुग के विषय में उन्हें पहले से ही पता था कि इस युग के विद्वानो की वाणि में उतनी क्षमता नही होगी। ना ही वे किसी का भूत, भविष्य आदि बता पाऐगें। अत: उन्होनें मानव कल्याण के लिए ज्योतिष वास्तु आदि कई अन्य विधियों, सूत्रो की रचना की, उन्होने सिर्फ मानव कल्याण को लक्ष्य मानकर ही इन विद्याओं को मुर्त रूप दिया। ऋषियों द्वारा वर्णित सूत्रो से प्रत्येक व्यक्ति का भूत वर्तमान व भविष्य में होने वाली घटनाओ का जाना जा सकता हैं। जिससे भविष्य में घटित होने वाली घटनाओ से बचा जा सकता हैं साथ ही वर्तमान को भी सुधारा जा सकता हैं।
            इसे हम यू समझ सकतें है, जैसे प्रत्येक व्यक्ति को देवता भाग्य के 100 अंक देकर भेजते हैं लेकिन ये अंक उसे एक साथ न देकर इधर-उधर बिखेर देते हैं व्यक्ति के पूर्व जन्मों के कर्मो के अनुसार। ज्योतिष केवल उन बिखरे हुए भाग्य के अंको को कैसे प्राप्त किया जाए उसका मार्ग ही बता सकता हैं।
            वर्तमान समय में ज्योतिष व वास्तु का प्रचलन तेजी से बढ रहा हैं साथ ही साथ ऐसे लोगो का जनसमूह भी बढ रहा हैं जो अपने को वास्तुशास्त्री व ज्योतिषी बतातें हैं चाहे उन्हें इस विद्या का ज्ञान न भी हो तो भी वे लोगो को सफलता प्राप्ति हेतु वास्तु के विभिन्न Products का उपयोग वास्तु दोष निवारण में करते हैं। जिसका वास्तु सुधार तो दूर वास्तू  से भी दूर-दूर तक कोई लेना देना नही होता हैं।

यहाँ हम कुछ वास्तु संबंधी Products की चर्चा करेगें कि वे वास्तु सुधार में कारगर है भी या नही -

1.         सीसा - किसी भी व्यक्ति का मकान यदि T Point बना हो तो वास्तु के हिसाब से यह अशुभ माना जाता हैं। यदि मकान का मुख्य द्वार ‘T’ पर हो तो अशुभता की मात्रा और भी बढ जाती हैं। ऐसे मकानो में आधुनिक वास्तुशास्त्री सीसे का प्रयोग सामने से आ रही सडक के समने लगाकर यह मान है कि घर में Negative उर्जा नही आएगी बल्कि उसका रुख वापस सडक पर हो गया हैं।

  किसी भूखण्ड का कोई कोणा कट रहा हो तो भी शीशे का प्रयोग इस प्रकार किया जाता हैं कि भूखण्ड के अन्दर से शीशे में देखने पर अपनी Boundry Wall का प्रतिबिम्ब दिखाई देता हैं। ऐसा करके ये कहते है कि कटान खत्म हो गया या कहेगें कि बढ गया हैं।
            यह धारणा बिलकुल निरर्थक हैं, शीशे का आविष्कार 6000 ईसा वर्ष पूर्व हुआ जबकि हमारे वेद, पुराण, ग्रंथ इससे काफी पुराने है, उस समय जब सीसे नही हुआ करते थे। इसे यु समझे एक बार बचपर में भगवान श्रीराम जी ने माता से चाँद को छुने की जिद् की तो माता कोशल्या ने पानी में चाँद को दिखाया न कि सीसे में। तो सीसा वास्तु दोष निवारण में किस प्रकार सक्ष्म हुआ।
            यह हमें खुद ही समझना होगा। यदि शीशे से ही भूखण्ड का आकार घटाया या बढाया जा सकता तो आज गरीब से गरीब व्यक्ति के पास स्वयं का भुखण्ड होता।

A-1
2.         Copper Wire- आज कल Copper Wire प्रयोग भी काफी प्रचलन में है, दिये गए चित्र संख्या ‘A-1’ में जिसका वायव्य कोना बढा हुआ हैं असे ठीक करने के लिए Copper Wire का प्रयोग करते है। चित्र संख्या ‘A-2’ के अनुसार Copper Wire को भूमि के अन्दर दबाकर कहते है कि अब आपका भूखण्ड का दोष समाप्त हो गया हैं। आपका भुखण्ड के अब दो भागो में विभजित हो गया हैं चित्र ‘A-3’ अनुसार। पहला भाग ‘क’ जो दोष रहित हैं दूसरा
A-2
                                                   
‘ख’ भाग जो दोषपूर्ण है उसे अलग कर दिया हैं। स विधि से आपका  वास्तु दोष सम्पन्न हुआ। जबकि निर्माण कार्य सम्पूर्ण भूखण्ड पर करवाया जाता हैं। दोषपूर्ण हिस्से में शोचालय, गेरेज या गायो हेतु प्रयोग में लिया जाता हैं। ऐसा प्रयोग वास्तु सम्मत नही होता हैं। ऐसे उपायो से वास्तुशास्त्री की तो चॉदी होती हैं परन्तु शुभफल की प्राप्ति भू-स्वामी को कभी भी प्राप्त नही हो पाती हैं।



2.         पाईप का प्रयोग - एक बार मै जयपुर में स्थित सरनाडूंगर औद्योगिक क्षेत्र में एक फैक्ट्री के वास्तु संबंधी जाँच के लिए गया। फैक्ट्री फर्नीचर व्यवसाय से संबंधित थी। जिसमें पहले दो साझेदार हुआ करते थे। एक या दो वर्ष बाद दोनो अलग हो गए। पहला साझेदार नारायण व दूसरा हर्षित था। अलग होकर हर्षित ने पास में ही नयी फैक्ट्री
किराये पर लेकर वही व्यापार आरंभ कर दिया। नारायण उसी फैक्ट्री में बना रहा। अगले 4-5 वर्षो में नारायण को काफी घटा हुआ, जिसके परिणामस्वरुप उसे फैक्ट्री छोडनी पडी जो उसने किराये।
           हर्षित का कार्य जोरो पर था, उसने वह फैक्ट्री जो नारायण के पास थी उसे भी किराये पर ले लिया। हर्षित का दुर्भाग्य भी इसी के साथ शुरू हो गया। जब मै वहॉ पहुँचा तो मैने देखा की भूखण्ड के मध्य भाग से उत्तर दिशा में ही सारा निर्माण कार्य हो रखा हैं तथा दक्षिण दिशा निमार्ण रहित हैं। फैक्ट्री का मुख्य द्वार भी दक्षिण-पूर्व के कोने में स्थित हैं। भूखण्ड के मध्य भाग्य का दोष जहा वशं वृद्धि को बाधित करता हैं। यहाँ फैक्ट्री के विस्तार अर्थात वृद्धि को बाधित कर रहा हैं, वही उत्तर दिशा में स्थित भारी निर्माण गरीबी लाता हैं। दक्षिण-पूर्व का मुख्य द्वार भी अनावश्यक घटनाओ को बढाता हैं।
            मैनें कहा कि इस भूखण्ड में एक बार निर्माण कार्य पूर्ण हो जाने के बाद नवीन निमार्ण हेतू एक भी ईंट नही रखी गई होगी। इस बात की पुष्टि हर्षित ने हामी भर कर दी। जब हम टहलते-टहलते पहली मंजिल पर पहुँचे तो मैने देखा कि स्टाफ के लिए शोचालय का निर्माण भी उत्तर दिशा पर स्थित दिवारर पर हो रखा हैं। मैरी बात को यह निर्माण ओर भी सिद्ध करता हैं।
            उत्तर दिशा के स्वामी देवता कुबेर व लक्ष्मी जी हैं। कुबेर व लक्ष्मी जी धन-धान्य से संबंधित देवी देवता हैं। अत: उत्तर दिशा मे निर्मित शोचालय घर की सम्पन्नता को धीरे-धीरे कम करने लगता हैं। मैने हर्षित को अन्य वास्तु सम्मत समाधानो के बाद जब कहा कि आप भूखण्ड के दक्षिण दिशा जो निर्माण रहित हैं उसे निर्माण करवाकर भारी करें तो उन्होनें कहाँ कि आपसे पहले एक वास्तुशास्त्री आएं थे। उन्होनें दक्षिण दिशा को भारी करने के लिए भूखण्ड के दक्षिण-पश्चिम कोने में एक लोहे का पाईप झंडा लगाकर लगवाया हैं। मैने देखा सचमुच ऐसा हो रखा था। मैने मन ही मन सोचा कि आजकल के वास्तुशास्त्री किस राह में निकल पडे हैं।
            खैर मैने हर्षित से पूछा कि दक्षिण दिशा भारी होने पर कोई फायदा हुआ क्या? 6 माह बीत चुके हैं कोई फायदा नही हुआ इसलिए तो आपको बुलाया हैं।
                        वास्तु का अर्थ निर्माण से हैं। समराङ्गण सूत्रधार के अनुसार कोई भी निर्मित संरचना वास्तु हैं।  जिसमें व्यक्ति को वर्षा, गर्मी, सर्दी आदि से बचाव कि व्यवस्था की जाती हैं। तो क्या हम एक लोहे के पाईप के नीचे इन सभी ऋतुओं से बच सकते हैं यदि नही तो उपाय कारगर नही हैं। इस दृष्टिकोण से हमें स्वयं सोचना होगा।

3.         पिरामींड -  पिरामिंड का प्रयोग भी वास्तु सुधार संबंधी उपायो में से एक हैं कहीं इसका प्रयोग दरवाजो को बंद करने के रूप मे तो कही आकार में बडे पिरामिंडो का प्रयोग उर्जा नियेत्रण हेतु किया जाता हैं।  यदि मुख्य द्वार गलत दिशा में स्थित हो तो प्लास्टिक के छोटे आकार के पिरामिंडो प्रयोग द्वार को बन्द करने के लिए किया जाता हैं।  चित्र संख्या  ‘A-4’ के अनुसार पिरामिंडो को लगाकर यह कहतें हैं कि पिरामिंडो के प्वाइंट आपस में मैगनेटिक उर्जा के माध्यम से द्वार को बन्द करते हैं(चित्र संख्या ‘A-5’ के अनुसार )। आपका दोषपूर्ण द्वार हमने बंद कर दिया हैं ऐसा कहते हैं।


यहाँ हमें यह समझना होगा कि पिरामिंड लगाने के बाद भी हम आने जाने के लिए वही द्वार उपयोग मे ले रहें हैं तो कि पिरामिंडो द्वारा बंद किया जा चुका है। क्या हम किसी भी दिवार के आर पार आ जा सकते हैं यदि नही तो ये नासमझी क्यों।

तुला के मंगल और व्यक्तित्व परिवर्तन

ग्रहों केमंत्रीमडल में मंगल को सेनापति का स्थान प्राप्त है। सेनापति वह होता हैं, जिसमें नेतृत्व करने की क्षमता होती हैं। सम्पूर्ण सेना का कार्यभार सेनापति के कंधो पर ही होता हैं।  हम अंदजा लगा सकते है कि इतने लोगो का नेतृत्व करने के लिए व्यक्ति को कितनी उर्जा की आवश्यकता होगी। मंगल को ज्योतिष जगत में Energy Source के रूप में जाना जाता है। वास्तु में इन्हे दक्षिण दिशा का स्वामित्व प्राप्त हैं। हमारे शास्त्रों / वेदों में दक्षिण दिशा में शयनकक्ष के प्रावधान होने का कारण भी शायद यही रहा हो। शयनकक्ष में स्थित व्यक्ति रातभर मंगल की उर्जा का अवशोषण करता हैं। जिससें वह परिवार के साथ-साथ समाज व कार्यक्षेत्र पर भी आसानी से Command कर सकें।
                        नवग्रहों में प्रत्येक ग्रह को अपना-अपना कारकत्व प्राप्त होता है। जैसे सूर्य पिता, सरकारी या स्वयं का व्यवसाय, अधिकारियों के साथ सामंजस्य का कारक है। शरीर में आत्मा, हड्डी, सिर का प्रतिनिधित्व करता है। इसी प्रकार मंगल छोटे भाई-बहन, मामा, शरीर के घाव, फोडे-फून्सी, गांठ, संकल्पशक्ति, वाद-विवाद, झगड़े, रक्त, पित्त, साहस, शोर्य आदि का कारक है। मंगल प्रधान व्यक्ति में मंगल के रहन-सहन गुण देखने को मिलते हैं।
                        मंगल एक ऊर्जात्मक ग्रह है, जब ये पत्रिका में किसी भी प्रकार व्यक्ति को प्रभावित करते हैं तो भूमि-भवन, कोर्ट-कचहरी, साहस, तर्कशक्ति व अहम आदि से संबंधित विषयों से हानि-लाभ दिलवातें हैं। यदि पत्रिका में मंगल की स्थिती, गोचर व षडबल अच्छा हो तो व्यक्ति जीवन में सफलता के नये-नये रास्ते खुलने का यही समय होता हैं। वही यदि मंगल कमजोर, अस्त या शत्रु हो तो भारी कठिनाईयों का सामना करता है।
पत्रिका में स्थित मंगल का फल अच्छा या खराब प्राप्त होगा ये पत्रिका में चल रही दशा-अन्तर्दशा केसाथ-साथ गोचर पर भी निर्भर होता हैं। गोचर राशि से किस भाव में किस राशि से किस ग्रह के साथ व किन ग्रहों कि दृष्टि है भी मायने रखता हैं।

4 फरवरी 2014 को दोपहर 2:24 पर मंगल कन्या राशि से तुला राशि में प्रवेश करेंगें।
            मंगल अग्नितत्व ग्रह है और तुला जो कि वायुतत्व राशि हैं। अर्थात अग्नि+वायु का संयुक्त प्रभाव इन दिनों देखने को मिलेगा। तुला राशि में उत्तराफाल्गुनी, हस्त व चित्रा नक्षत्र आतें जिसके स्वामि सूर्य, चंद्रमा व मंगल हैं। ज्योतिष में सूर्य आत्मा ,अधिकारी वर्ग, चंद्रमा मन, तकनिकी विभाग हैं और तुला राशि के स्वामी ग्रह शुक्र हैं जो कि स्त्री के कारक हैं।  मंगल, सूर्य, चंद्रमा व शुक्र का संयुक्त असर हमें व्यक्ति समाज व देश में देखने को मिलेगा ये असर Positive  व Negative दोनो देखने को मिलेगा। एक ओर जहॉ स्त्रीयो से संबंधीत अपराध बढेगें। स्त्रीयॉ का देश में प्रभुत्व बढेगा। वही दुसरी ओर अफसरो, नेताओं में भी खीचातानी देखने को मिलेगी। Real Estate का कारोबार बढेगा साथ ही भूमि से संबंधित धोखाधडी के मामलो में भी वृद्धि होगी। अपराधिक मामले इस दौरान जयादा सक्रीय होगें।

मंगल का प्रत्येक राशि के व्यक्तियों पर अलग-अलग प्रभाव पड़ेगा:-

मेष:- आपकी राशि मिथुन से गोचरवश मंगल सप्तम भाव में स्थित हैं। जन्मपत्रिका में सप्तम भाव स्त्री, साझेदारी (व्यापारिक), व्यापार आदि से संबंधित है। मंगल यहाँ स्थित होकर स्त्री से कलह, स्त्री के स्वास्थ्य संबंधी समस्या, यदि व्यापार साझेदारी का है तो साझेदारी द्वारा आर्थिक नुकसान होता है, जिसके परिणामस्वरूप  आप पर आर्थिक संकट उत्पन्न होता है। मानसिक व शारीरिक कष्ट होता है। भइयो से विरोध स्वयं को कष्ट नेत्र विकार की संभावना बनी रहेगी, वैवाहिक सुख न के बराबर प्राप्त होगा। किन्तु मामा व संतान पक्ष से लाभ होता है। अविवाहितों के विवाह संबंधी मामलो  गोचर के उत्तराद्र्ध में आगें बढेगें।

वृषभ:- आपकी राशि में मंगल छठे भाव में गोचर कर रहे हैं।  छठा मंगल आपको अन्न, धन, बल, शत्रुओं पर विजय, यश प्राप्ति करवाता है। कार्यस्थल पर भी आपके कार्यों की प्रशंसा होगी। यदि आप नोकरी करते हैं तो अधिकारी वर्ग अब आपके अनुकूल हो चलेंगे। अभी तक जो ऋण प्रबन्ध नही हो पा रहे थे वो अब धीरे-धीरे आगे बढने लगेंगें। विद्यार्थी वर्ग को आशनुकूल परिणाम प्राप्त होगें। प्रतियोगी परिक्षाओ में सफलता प्राप्ति का प्रतिशत बढेगा, यदि पत्रिका में अन्य ग्रहो के साथ-साथ दशा भी अनुकूल रही तो सफलता निश्चित है।

मिथुन:- आपकी राशि केअनुसार मंगल पंचम भाव में गोचर कर रहे हैं। मंगल का यह गोचर आपके लिए कष्टकारी रहेगा। यदि आप व्यापार करते हैं तो हानि होगी और नौकरी करते हैं तो अधिकारी वर्ग से परेशानी आएगी। समाज में प्रतिष्ठा घटने लगेगी। संतान को कष्ट होगा। इस समय जिन्हें संतान होने की उम्मीद चली आ रही है अर्थात् प्रेगेनेन्सी कन्फर्म हो चुकी थी, उन्हें विशेष ध्यान रखना चाहिए। यह गोचर उनकी संतान के लिए अत्यनत कष्टकारी है। संतान लक्ष्य की प्राप्ति के लिए अनैतिक तरीका न अपनाए अन्यथा भारी हानि उठानी होगी।

कर्क:- आपकी की जन्मराशि से मंगल गोचरवश चतुर्थ भाव में आ गए हैं, जन्मपत्रिका का चतुर्थ भाव जमीन-जायदाद, माता, रिश्ते-नाते, सुख-सुविधा, शिक्षा आदि से संबंधित होता है। मंगल का यह गोचर चतुर्थ भाव से संबंधित प्रत्येक विषयों पर विपरीत प्रभाव डालेगा, जैसे माता को शारीरिक कष्ट, शत्रु वृद्धि, स्त्री को कष्ट, कार्यस्थल पर असफलता, आय के साधनों में कमी, ज्वर, वक्षस्थल या रक्त विकार से संबंधित रोग, शत्रु वृद्धि, स्वजनों का विरोध, स्वयं के बल व पराक्रम में कमी होगी।

सिंह:-  आपकी राशि से मंगल का गोचर तृतीय भाव में हो रहा है। मंगल का यह गोचर अच्छा होता है। पत्रिका का तृतीय भाव अन्य विषयों के साथ-साथ बल व पराक्रम से संबंधित भी होता है और मंगल ऊर्जावान व पराक्रम से संबंधित ग्रह हैं।
            पिछले समय से चली आ रही समस्याएँ समाप्त होने लगेगी। आपके शत्रु जो अब तककिसी न किसी रूप में परेशान कर रहे थे, अब आपका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाएंगे। आप अपने अंदर एक नवीन ऊर्जा को महसूस करेंगे। सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ेगी। कोर्ट-कचहरी के मामले अब आपकेअनुकूल हो चलेंगें।

कन्या:- आपकी राशि से मंगल द्वितीय भाव में गोचर कर रहे हैं। पत्रिका का द्वितीय भाव, धन, कुटुम्ब, वाणि आदि से संबंधित होता है। मंगल चूंकिऊर्जात्मकग्रह हैं और धनु राशि भी अग्नि तत्व है अर्थात् ऊर्जा ऊर्जा का भयंकर प्रवाह आपकी वाणि में देखने को मिलेगा, जिसके प्रभाव से लोग आपसे दूरी बनाने लगेंगे। जहाँ द्वादश शनि साढ़े साती के द्वारा कष्ट पहुंचाना शुरु कर  चुके थे, वही मंगल आग में घी का कार्य करेंगे। यदि आप विवाहित हैं तो जीवन साथी के साथ मतभेद बढ़ेगा। आपको चाहिए की आप मंगल देव की आराधना करें।

तुला:- इस  समय मंगल का गोचर आपकी राशि पर से हो रहा है। आपकी राशि धनु तथा ग्रहों में मंगल दोनों ही ऊर्जा प्रधान ग्रह हैं, परिणामस्वरूप मन बैचेन रहेगा, वाहन से कष्ट, संतान से व संतान को कष्ट, कार्यक्षेत्र पर अधिकारी वर्ग से परेशानी, व्रण, ज्वर या रक्त विकार, जीवन साथी को कष्ट आदि परिणाम प्राप्त होंगे। यात्राओं में भारी कष्ट होगा, जमीन-जायदाद से संंबंधित मामलों में हानि उठानी पड सकती हैं।

वृश्चिक:- आपकी जन्मराशि से मंगल गोचरवश द्वादश भाव में हो रहा है। मंगल का यह गोचर शुभ नहीं होता है। पत्रिका का प्रत्येकभाव से 12वाँ भाव उस भाव की हानि करता है अर्थात् द्वादश मंगल शारीरिककष्ट, नेत्र रोग, जीवन साथी को स्वास्थ्य संबंधी परेशानी, मान-सम्मान में कमी प्राप्त हो सकती हैं।
            पंचम भाव पुत्र से संबंधित होता है और पंचम से अष्टम द्वादश भाव हुआ, जिसके परिणामस्वरूप संतान पक्ष को यर संतान से कष्ट प्राप्त हो सकता है। यदि संतान किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी में लगी हो तो सफलता मिलना मुश्किल होगा।

धनु:- मंगल आपकी राशि में एकादश भाव में गोचर कर रहे हैं। पत्रिका का एकादश आय, बड़े भाई-बहन, लाभ सिद्धि, वैभव आदि विषयों से संबंधित होता है। मंगल का इस भाव से गोचर एकादश भाव से संबंधित विषयों की प्राप्ति को दर्शाता । लाभ के साधन, व्यापार आदि इस गोचर में बढेगें। भाईयों का सहयोग प्राप्त होगा। शत्रु स्वत: ही परास्त होगें। कार्यों में सफलता मिलेगी।अविवाहित के विवाह संबंधी मामनले आगे बढेगें। इस समय आपको वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए।

मकर:- जन्म पत्रिका का दशम भाव व्यवसाय, नौकरी, मान-सम्मान, ज्ञान, पिता, कर्म, कीर्ति, जय-विजय आदि से संबंधित होता है। मंगल अपनी राशि मकर से दशम में गोचर कर रहे हैं। मंगल जहाँ अपनी राशि मेश से चतुर्थ है, वही दूसरी राशि वृश्चिक से द्वादश भी हैं। अत: इस समय कोई नवीन योजनाओ का क्रियांवयन न करे अन्यथा हानि उठानी पड सकती हैं।

कुंभ:- नवम भाव भाग्य व द्वितीय धन, कुटुम्ब से संबंधित है। मंगल इस गोचर में आपको जहाँ एकऔर धन प्राप्ति व भाग्य बढ़ायेंगे, वहीं दूसरी ओर आपमें एकअसीम ऊर्जा भी प्रवाहित करेंगे। व्यापार से लाभ होगा। भूमि-भवन से संबंधित मामले जोर पकड़ेंगे। पद-प्रतिष्ठा बढ़ेगी।
                        अब तक आपको जो शारीरिक व मानसिक कष्ट प्राप्त हो रहा था, उसमें अब धीरे-धीरे सुधार होने लगेगा। इस गोचर में छुट-पुट शत्रु उत्पन्न होंगे, धन की कमी सताने लगेगी, वहीं उत्तराद्र्ध में समस्त समस्याओं से छुटकारा प्राप्त होगा। कार्यस्थल पर आपके कार्या की प्रशंसा होगी। भूमि-भवन संबंधी मामले जोर पकडेगें।


मीन:- मंगल का यह गोचर आपके लिए कष्टकारी रहेगा क्योंकि इस समय मंगल आपकी राशि से अष्टम भाव अर्थात् आयु भाव में गोचरवश आ गए हैं। मंगल की यह स्थिति आपकी आय के स्त्रोत को भी प्रभावित करेगी।  गुदा प्रदेश केआस-पास या नेत्र से संबंधित रोग हो सकतें हैं। आयु का हृास, परेदेश-गमन, बल व पराक्रम को भी प्रभावित करेंगे। इस समय आपको चाहिये आप हनुमान जी की भरपूर सेवा करें।